सुबह से रात
सुनील चौधरीसुबह से शाम तक
इन पहाड़ों पर
खड़े देवदार
कहीं छुप गए हैं
इस काली
स्याह अँधेरी रात में
सिर्फ़ पीछे
नीले आकाश में
टिमटिमा रहे हैं
नन्हे तारे
सुनाई दे रहा है
सरस्वती का मंद स्वर
पीछे कहीं दूर
पहाड़ी के पार
बज रहा है
भजन
घरों की टिमटिमाने
लगी हैं
लाल, हरी, पीली लड़ियाँ
अब सो जा दोस्त
कसोल में रात होने
लगी है।