संघर्ष
सुनील चौधरीजन्म और मृत्यु के बीच
संघर्ष है
ठीक वैसे ही
जैसे कि
नदिया की उफनती लहरों के बीच
पत्थर होता है
वह अपना अस्तित्व
एक साथ नहीं खोता
बस धीरे धीरे
नदिया की धारा में
मिल जाता है।
मेरे दोस्त
काग़ज़ की नाव भी
धीरे धीरे डूबती है
और काग़ज़
वह तो डूबता ही नहीं
क्योंकि
वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता।
तुम भी दो पाटों के बीच पिसकर
अन्न बनना
जो कि लोगों की पेट की आग बुझाता है।
जन्म और मृत्यु के बीच
उन्हें ज़िंदा बचाए रखता है।