सृजन की ढिठाई
क्षितिज जैन ’अनघ’
मुझे लगता है हर सृजन के लिए
चाहिए होती है
थोड़ी ढिठाई
थोड़ी बेहयाई
और थोड़ी सी
चिकने घड़े वाली चिकनाई
तभी
अपने लिखे को काटकर
उसपर लकीटे मारकर
हम लिख सकते हैं कविता
बनाकर अपने
कविता में असफल प्रयासों को
विचारों की उर्वर खाद!