क्षितिज जैन ’अनघ’ - 1
क्षितिज जैन ’अनघ’आज के इस धनयुग में, सभी का हुआ मोल
बिकाऊ आदमी बने, यहाँ तुला के तोल॥१॥
चूल्हे में विद्वान गए, पूज्य मात्र धनवान
वही श्रेष्ठ आचार में, वही ज्ञानी महान॥२॥
उस बेबस मज़दूर का, दिल टूटा बन काँच
शाम को जब जल न सकी, फिर चूल्हें में आंच॥३॥
रमणीय स्थल में करें, युवक-युवती विहार
झुग्गी के बालक अभी, रोते बन लाचार॥४॥
विद्वान नव गोष्ठी बुला, करें चर्चा विचार
पीछे की होर्डिंग पर, मालिक की जैकार॥५॥
वितंडा रूप युद्ध में, विवेक होता क्लांत
बुद्धिजीवी सुभट हुए, शस्त्र बनते सिद्धान्त॥६॥
सुख ख़रीदना चाहते, लगा स्वर्ण का दाम
अंगुलियाँ घी में डुबा, इच्छित बस आराम॥७॥