नवाचार अपनाना होगा
क्षितिज जैन ’अनघ’दृग मींचे कल्पना बहुत करी
अब कुछ पौरुष दिखाना होगा
जिसे कहा गया रेत का महल
उसे आज सत्य बनाना होगा।
जिधर भी बढ़ाओगे पग अपना
वहीं दिखने लगेंगी नई दिशाएँ
आँखों के समक्ष उभर आएँगी
वे अकल्पित अनंत संभावनाएँ।
स्वयं में भी परिवर्तन कर कुछ
अनुकूल नवाचार अपनाना होगा।
अपनी प्रेरणा ख़ुद ही बनकर
स्थापित करना है नव संवाद
निमिष को भी भटका न सकें
भय, संशय आलस्य या प्रमाद।
हाथ में आए किसी अवसर को
जलकण सम नहीं लुटाना होगा।
कितने ही चलते गंतव्य की ओर
पर बीच पथ में ही थक जाते हैं
और देख चुनौतियों को कितने ही
अपना गर्वीला मस्तक झुकाते हैं।
पर तुम्हें बन अडिग हे अन्वेषी!
अपना गंतव्य अवश्य पाना होगा।
जो ख़ुद कभी पग न उठा सके
वे कापुरुष करेंगे तुम्हारा उपहास
बस झाँक लेना उनकी आँखों में
जो चाहेंगे देना तुम्हें कोई त्रास।
लोकभय की इन खिंची लकीरों को
अपने पदचिह्नों से मिटाना होगा।