सावन के दोहे
क्षितिज जैन ’अनघ’पुकार करी मयूर ने, छाया क्या आनंद
डाल पर किल्लोल भरे, हर्षाये खगवृंद॥1॥
जीवन की बेल करती, मेघों का आह्वान
होकर हरी भरी यहाँ, कर रही सुधापान॥2॥
पोखर झील पुकारते, बुझा हमारी प्यास
महका तू सावन अभी, माटी की सौंधास॥3॥
सुन गर्जना मेघ की, मुदित हुआ संसार
पात पात से गूँजती, जिजीविषा की पुकार॥ 4॥
सावन के समान लुटा, सभी पर नेह-प्यार
पाओगे जग में बड़ा,आदर औ’ सत्कार॥5॥
सभी मानव करते यदि, यही नीति स्वीकार
रहेगा ना जीवन में, सुख का पारावार॥6॥
सदाचरण को ले बना,अब जीवन की नींव
आएगा सावन सुख का, आनंद भी अतीव॥7॥
हर्षित हो धरा सदैव, करें हम कुछ ऐसे काम
आषाढ़-हरियाली से, भर जाए धरा धाम॥8॥