पता नहीं कौन से जन्म की दुश्मनी निभाई है।  
जो इस नासपीटे ने, सिक्स पैक बॉडी बनाई है।  
एक सुबह मेरी पत्नी ने कहा
मुझे शाहरुख़ ख़ान की बॉडी चाहिये।  
मैंने कहा तो अपने पिताजी से कहिये।  
वो बोली—
जब पिताजी ने तुमसे मिलवाया था।  
तब भी मुझे यही समझाया था।  
बेटा पैकिंग पे मत जा मेरी बात मान।  
अन्दर से ये भी है शाहरुख़ ख़ान।  
और फिर इसकी हाईट भी ज़्यादा है।  
शाहरुख़ ख़ान तो इसका आधा है।  
नहीं तो मेरा तुम्हारा क्या मेल।  
छछूंदर के सर में चमेली का तेल।  
पर जबसे शाहरुख़ ख़ान ने अपनी शर्ट उतारी है।  
तब से मेरा दिल बहुत भारी है।  
फ़र्स्ट थिंग्स फ़र्स्ट।  
दिस इज़ ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट।  
 
मैंने कहा देवी कैसी बात कर रही है भगवान से डर।  
वो बोली शुक्र मनाओ कि तुमपे नहीं है एक्सचेंज ऑफ़र।  
मैंने कहा देवी क्या ये अच्छा लगेगा कि
मैं शाहरुख़ ख़ान के पास जाऊँगा।  
और तेरे रिश्ते की बात चलाऊँगा।  
 
ये सुनते ही पत्नी का चढ़ गया पारा।  
उसने मुझे आधे घंटे तक मारा।  
फिर बोली
दो मिनट साँस ले लूँ तब तक कमर्शियल ब्रेक।  
उसके बाद करती हूँ एक और टेक।  
 
मैंने कहा देवी मुन्नाभाई को ध्यान में लाओ।  
जो समझाना है विनम्रता से समझाओ।  
वो बोली संक्षेप में केवल इतनी कहानी है।  
तुम्हें एक महीने के अन्दर सिक्स पैक बॉडी बनानी है।  
मैंने कहा देवी बॉडी का क्या है बॉडी तो बन जायेगी।  
पर तेरे ये किस काम आयेगी।  
कोई सालिड रीज़न है या लेनी है फ़ील।  
इस बार मारा तो पड़ गये नील।
   
वो बोली आज कल चल रहा है अजब सा ट्रेंड।  
बीवियों को छोड़ रहे हैं तुम्हारे बिना बॉडी वाले फ़्रेंड।  
आमिर और सैफ़ ने छोड़ दी अपनी वैफ़।  
और जो जो भी बॉडी बना रहे हैं।  
सेम बीवी के साथ निभा रहे हैं।  
शाहरुख़ और रितिक हैं हॉट पिक।  
मैंने कहा क्यों शाहिद की बॉडी नहीं है।  
क्या उसके हुआ फोड़ा है।  
वो बोली हटो जी उसे तो क़रीना ने छोड़ा है।  
 
मैंने कहा
अगर बॉडी बन जायेगी तो मौहल्ले की लड़कियाँ मारेंगी लैन।  
वो बोली अगर तुमने मुड़ के देखा तो फोड़ दूँगी नैन।  
मैंने कहा ऐसा है तो
मैं जिम विम जाता हूँ।  
बॉडी बनाता हूँ।  
दूध शूध पीता हूँ।  
लाइफ़ को जीता हूँ।      
ठीक है सरकार।  
निकालो दस हज़ार।  
ये सुनते ही पत्नी ने हाथ पीछे खींचे।  
हम समझ गये कि अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे।  
 
पत्नी की आँख हो गई नम।  
बोली आख़िर कब होगी ये महँगाई कम।  
हम कब तक अपनी इच्छाओं को दबायेंगे।  
क्या बुढ़ापे में जा के बॉडी बनायेंगे।  
मैंने कहा देवी तू इच्छाओं को रोती है।  
हिंदुस्तान में २२ करोड़ लोगों की इच्छा ही नहीं होती है।  
ये दो रूपये रोज़ में अपना पूरा घर चलाते हैं।  
बंद और बरसात में तो भूखे ही सो जाते हैं।  
इनके यहाँ बीमारी बीमार को साथ ले के जाती है।  
बच्चों की मासूमियत बचपन में छिन जाती है।  
इन्हें वेट घटाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।  
मसल छोड़ो हड्डियों पर खाल मुशिकल से है चढ़ती।  

हमारी अर्थव्यवस्था भी पर्दे पर शहरुख़ ख़ान सी नज़र आती है।  
पर आज भी वह हड्डियों के ढाँचे सी खेत में हल चलाती है।  

पूरी कविता का सार दो पंक्तियों में—

जैसे दिल के रोने से आँख है नम नहीं होती।  
शेयर बाज़ार चढ़ने से ग़रीबी कम नहीं होती। 

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