चुप बे

हरजीत सिंह ’तुकतुक’ (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

रात के बारह बजे थे। 
हम गली के नुक्कड़ पर खड़े थे। 
चारों तरफ़ सन्नाटा था। 
हमारे हाथ में आटा था। 
 
डर के मारे, 
हमारी जान निकली जा रही थी। 
गली में रहने वाले कुत्ते की, 
स्पेसीफ़िकेशन याद आ रही थी। 
 
गली में मिल जाये, 
नुक्कड़ तक दौड़ाता था। 
कभी कभी तो, 
बोटी भी नोच खाता था। 
 
हमनें गली में झाँक कर, 
ग़ौर से गली का मुआयना किया। 
फिर सावधानी पूर्वक, 
गली में प्रवेश किया। 
 
आधे रास्ते में पहुँच कर, 
हमें वो महाकाल नज़र आया। 
हमें देखते ही, 
ज़ोर से गुर्राया। 
 
हम जहाँ खड़े थे वहीं थम गये। 
हमारे पाँचों तंत्र एक साथ जम गये। 
हमारी हालत देख कर वो हौले से मुस्कराया। 
फिर हमारे पास तक आया। 
 
बोला अबे यार क्या करता है। 
आदमी होकर कुत्ते से डरता है। 
जा निकल जा नहीं काटूँगा। 
सच्ची बोलता हूँ पैर भी नहीं चाटूँगा। 
 
हमने कहा, 
कुत्ता जी, 
आप तो शक्ल से ही जैन्टलमैन नज़र आते हैं। 
लोग बेकार में आपके बारे में उल्टी सीधी उड़ाते हैं। 
 
और आपका नेचर तो इतना आला है। 
वो बोला, 
चुप बे! 
इलेक्शन आने वाला है। 

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