भड़ाम रस

हरजीत सिंह ’तुकतुक’ (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

राकेट से बोला यह बम, 
आग लगते ही हो जाते हो सरगम। 
एक बार ट्राई करो, लीग से हटो। 
कभी तो मर्दों की तरह, ज़ोर से फटो। 
 
राकेट बोला
यह तेरे पिछले कर्मों की सज़ा है। 
कि आग लगाते ही भाड़ से फट जाता है। 
बेटा फटने से कहीं ज़्यादा मज़ा
उड़ने में आता है। 
 
इस डिस्कशन ने पकड़ा ज़ोर
ढेर सारे पटाखे इकट्ठे हो गए चहुँ ओर। 
 
बम बोला 
मेरी आवाज़ से जग हिलता है। 
राकेट बोला
मेरी आभा से नभ खिलता है। 
 
इतने में ही वहाँ एक फुलझड़ी आई। 
उसने दोनों की पूँछ में आग लगाई। 
 
दो ही पल में, 
सारा डिस्कशन सिमट गया। 
एक बेचारा आसमान में उड़ गया। 
दूसरा वहीं पड़ा पड़ा फट गया। 
 
कविता का सार— 
 
फुलझड़ियों से बच के रहना। 
यह ऐन वक़्त पे दग़ा देती हैं। 
कभी तो बम में लगा देती हैं आग। 
कभी राकेट सा हवा में उड़ा देती हैं। 

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