शहर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र)
सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’मुर्दों से भरे शहर,
दिल कटे-फटे
चिथड़ों से,
ऊब. . घुटन
कृत्रिम
मशीनी जीवन।
जिऊँ तो जिऊँ कैसे
घोर अकेलापन।
मुर्दों से भरे शहर,
दिल कटे-फटे
चिथड़ों से,
ऊब. . घुटन
कृत्रिम
मशीनी जीवन।
जिऊँ तो जिऊँ कैसे
घोर अकेलापन।