प्रेम (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’प्रेम,
भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में
एक ठहराव होता है,
कल्पनालोक का
अहसास होता है,
स्वर्गीय अनुभूति
होता है,
कभी-कभी
कुछ कर गुज़रने का
मक़सद भी हो सकता है,
पर
यह एक
पूरी ज़िंदगी नहीं हो सकता।
नहीं
मैं
सहमत
नहीं...
प्रेम दर्शन नहीं,
कभी-कभी
पूरी ज़िंदगी
किसी की यादों में
या
इंतज़ार में कट जाती है,
बिना किसी शोर,
बिना पछतावे के।