लौट चलें
सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’आओ
वापस लौट चलें
इन
भीड़ भरे शहरों से
अपने गाँव की
पगडंडियों की ओर।
खेतों की मेड़ पर
सुबह-सुबह
ओस से नहाई
हरी घास पर
नंगे पाँव
टहलते हैं।
वापस
बुला रहे हैं
गाँव के
हरे भरे खेत,
पोखर ..
जिसमें तैरते होंगे
इस समय
गाँव के सारे बच्चे।
दोपहरी
बिताएँगे
आम के बाग़ में
किसी पेड़ के नीचे।
एक बार फिर
गाय-भैंसों को।
चौका नदी की तरफ़
चराने ले जायेंगें।
वहाँ
खेलेंगे
गिल्ली-डंडा
बच्चा बन
बच्चों के संग।