शाम की कविता
राजेंद्र ‘राज’ खरेसूर्यास्त की अंतिम किरण
विश्वास की अंतिम तरंग
पंखुरियाँ अवसादमयी
आशा के अंतिम पुष्प में
दूरियों के विस्तार परे
निश्चित बिंदु पर
पथ-बंधु नहीं, तुम क्यों नहीं?
मात्र उतरते अन्धकार में
एक पक्षी की चीत्कार
तथा, कुछ हिलती परछाईं