खोई सी लड़की
राजेंद्र ‘राज’ खरेजब परछाइयाँ लम्बी होती हैं
और शाम को साथ छोड़ देती हैं,
जब रात उतर आती है–
और
कँगूरों से लिपट जाती है,
पीली रोशनियों के तले,
उन जादुई लम्हों में
मुझे मिली एक खोई सी लड़की . . .
उसका जिस्म उजड़ा,
उसके ख़्याल बिखरे
जैसे कोई स्फटिक पत्थर
चकनाचूर हो जाए,
अपनी राह तलाशती वह,
ज़िन्दगी के गलियारों में-
मुझे मिली एक खोई सी लड़की . . .
उसकी आँखों के आँसू
सूख कर सफ़ेदी बने,
उसके सपने अँधेरों में
ख़ामोश हुए,
उसने इर्द-गिर्द दुनिया देखी, और–
मेरे साथ वह चल पड़ी,
यूँ मुझे मिली मेरी ज़िन्दगी
मुझे मिली एक खोई सी लड़की . . .
ज़िन्दगी के गलियारों में-
मुझे मिली एक खोई सी लड़की . . .
रेशे के मानिंद, तिनके की तरह-
हवाओं में काँपती हुई,
वह मेरे साथ चली
मुझे बुलंद करती हुई-
जीने के लिए
पीली रोशनियों के तले,
उन जादुई लम्हों में
मुझे मिली एक खोई सी लड़की . . .