मृत्यु-पाश 

01-11-2022

मृत्यु-पाश 

राजेंद्र ‘राज’ खरे (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

 [1] 
हे मृत्यु! 
अब आओ–
और करो आलिंगन, 
ले चलो अपने साथ–
हमेशा के लिए, 
यह अर्थहीन अस्तित्व–
यह रोज़ का संघर्ष! 
क्यों और किसके लिए? 
समाप्त हो यह सब, 
हमेशा के लिए! 
 
 [2]
पवित्रता की सोच-
निकलती मलिन, 
विश्वास की नींव–
होती जर्जर–
और खंडहर, 
स्वागत है अविश्वास का! 
सत्य वनवासित हो, 
हमेशा के लिए! 
 
 [3]
विश्वासघात की व्यथा-
कितनी भयंकर वेदना यह, 
डूबती जिजीविषा–
फिर भी जीना पड़ता यहाँ! 
हे मृत्यु! 
अब करो न विलम्ब, 
अब करो आलिंगन, 
हमेशा के लिए! 
 
 [4]
जियें अब अवसाद और–
वेदना में, 
आवश्यकता कहाँ आशा की! 
जब निराशा का राज्य हो, 
यह मरीचिका प्रेम की, 
मिलन की, 
झुलसाएगी, तड़पायेगी ही, 
इसीलिए–
आशाओं का अंत हो! 
हमेशा के लिए! 
 
 [5]
हे मृत्यु! 
अब करो न विलम्ब! 
अब करो आलिंगन, 
आत्मा तो कब की विसर्जित है। 
इसे देह को कर लो विलीन, 
हे मृत्यु! 
अब करो न विलम्ब! 
अब करो आलिंगन, 
हमेशा के लिए, 
चिताग्नि चिर प्रतीक्षित है! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें