नूर-अफ़्शाँ/ शाम-ए-ग़म

01-11-2022

नूर-अफ़्शाँ/ शाम-ए-ग़म

राजेंद्र ‘राज’ खरे (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

शामे-ग़म उनकी नज़र हो गयी
नूर-अफ़्शाँ नुमायाँ हो गयी
 
राहे-मंज़िल नीम-निगाही पे
दास्ताँ-ए-गमे-दिल हो गयी 
 
उसकी  जुल्फों की छाँव में
शामे-ग़म शबे-माह हो गयी
 
नैरंगिये-हुस्न के तिलिस्म में
आह दिल में दफ़न हो गयी
 
बुझे शबे-हिज्रे-चिराग़ ‘राज’
नूरे-शम्अ नूरे-सहर हो गयी

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