सैल्फ़ डिफ़ेन्स

15-09-2022

सैल्फ़ डिफ़ेन्स

सुरेश बाबू मिश्रा (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आज अंजलि को आवश्यक कार्यवश कॉलेज से जल्दी घर जाना था। वह शहर के गर्ल्स डिग्री कॉलेज में बी। एससी। प्रथम वर्ष में पढ़तीं थीं। अपनी सहेलियों को बताकर वह फिजिक्स क्लास अटेन्ड करने के बाद कॉलेज से बाहर निकलीं। साइकिल स्टैण्ड से साइकिल लेकर वह घर के लिए चल दीं। अंजलि जैसे ही एक सुनसान गली में पहुँची बाइकों पर सवार शोहदों ने उसका रास्ता रोक लिया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती दो शोहदों ने उसे साइकिल से खींचकर अपनी बाइक पर बैठा लिया और बाइक स्टार्ट करके चल दिए। 

अंजलि सहायता के लिए चिल्लाई। उसकी चीख पुकार सुनकर कुछ लोग घरों से बाहर निकल आए मगर शोहदों के हाथों में लहराते हुए चाकू देखकर किसी की हिम्मत उन्हें रोकने की नहीं हुई। दिन-दहाड़े एक लड़की को चार शोहदे उठाकर लिए जा रहे थे और वहाँ मौजूद लोग तमाशबीन बने थे। 

तभी गली की दूसरी ओर से पाँच-छह लड़कियाँ साइकिलों से आईं। उन्होंने एक ख़ास क़िस्म की यूनीफ़ॉर्म पहन रखी थी और उनके हाथों में स्टिक्स थीं। 

उन्होंने अपनी साइकिलें गिराकर उन शोहदों का रास्ता रोक लिया। इससे पहले कि शोहदे कुछ समझ पाते उन लड़कियों ने शोहदों पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। स्टिक्स के वार से शोहदों के चाकू दूर जा गिरे थे। अंजलि को उनकी गिरफ़्त से छुड़ाकर उन्होंने शोहदों की ऐसी धुनाई की कि वे अपनी मोटरसाइकिलें वहीं छोड़कर जान बचाकर भागे। गली के लोग हैरत से उन लड़कियों को देख रहे ये और उनकी हिम्मत की दाद दे रहे थे। 

गली में खड़े एक बुज़ुर्ग को बुलाकर उन लड़कियों ने कहा, “अंकल जी आप सौ नम्बर डायल कर पुलिस की पिकेट को बुला लेना और उन शोहदों के यह चाकू और मोटरसाइकिलें पुलिस को सौंप देना। हम इस लड़की को इसके घर तक छोड़ने जा रहे हैं।” 

फिर वे सब अंजलि को साथ लेकर चल दीं। रास्ते में उन लड़कियों ने अंजलि को अपना ट्रेनिंग सेंटर दिखाया। उस पर सैल्फ़ डिफ़ेन्स ट्रेनिंग सेन्टर का बोर्ड लगा हुआ था। 

उन लड़कियों ने अंजलि को बताया, “हम लोग शाम को चार से छह बजे तक यहाँ ट्रेनिंग लेने आते हैं। हम सब कॉलेज स्टूडेन्ट्स हैं। हमें ट्रेनिंग देने वाली दीदी भी अनमैरिड हैं और उनकी उम्र क़रीब पच्चीस-छब्बीस साल होगी। वे हमें जूडो-कराटे, योगा के साथ-साथ आत्मरक्षा के गुर सिखाती हैं। उन्होंने हम लोगों में इतना आत्मविश्वास भर दिया है कि हम किसी भी परिस्थिति का मुक़ाबला कर सकते हैं। उन्होंने हमारे अन्दर के भय को दूर कर दिया है। 

अंजलि बड़े अचरज से उनकी बातों को सुन रही थी। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि कल से वह यहाँ ट्रेनिंग लेने ज़रूर आएगी। 

घर जाकर उसने अपने साथ घटी पूरी घटना अपनी मम्मी को बताई। मम्मी यह सुनकर बहुत घबरा गईं। फिर अंजलि ने उन्हें उस ट्रेनिंग सेन्टर के बारे में बताया। उसने कहा, “मम्मी मैं भी वहाँ ट्रेनिंग लेने जाना चाहती हूँ। अगर वह लड़कियाँ समय पर नहीं आ जातीं तो वे शोहदे मेरी क्या गति बनाते यही सोच कर मेरी रूह काँप जाती है। मैं भी उन लड़कियों की तरह बनना चाहती हूँ।” 

“ठीक है मैं तुम्हारे पापा से इस बारे में बात करूँगी,” मम्मी ने कहा। मम्मी ने किसी तरह अंजलि के पापा को भी इस बात के लिए तैयार कर लिया। 

अपनी मम्मी-पापा की अनुमति लेकर अंजलि ने ट्रेनिंग सेन्टर पर जाना शुरू कर दिया। उसने जब पहली बार ट्रेनिंग देने वाली दीदी को देखा तो वह उन्हें देखते ही रह गई। लम्बा छरहरा बदन खिला हुआ गोरा रंग हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी आँखें, लम्बी नाक और चेहरे पर आत्मविश्वास की गहरी चमक। कुल मिलाकर उनका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावी था। उनके शब्दों में तो मानो जादू था। अंजलि उनसे बहुत प्रभावित थी और वह पूरे मनोयोग से ट्रेनिंग लेने में लगी हुई थी। 

अंजलि को ट्रेनिंग सेन्टर पर आते हुए कई दिन बीत गए थे। मगर वह अभी दीदी के बारे में केवल इतना ही जान पाई थी कि वह किसी गर्ल्स इंटर कॉलेज में लेक्चरार थीं और कॉलेज के बाद वह यह ट्रेनिंग सेन्टर चलाती थीं। सेन्टर की किसी अन्य लड़की को भी उनके बारे में इससे अधिक कोई और जानकारी नहीं थी। वे यह ट्रेनिंग सेन्टर निःशुल्क चलाती थीं और किसी से कोई फ़ीस नहीं लेती थीं। 

अंजलि के मन में दीदी के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। उसने और लड़कियों से भी इस बारे में बात की। मगर दीदी के कठोर अनुशासन के कारण उनसे कुछ पूछने की किसी को हिम्मत नहीं पड़ रही थी। सभी उचित अवसर की तलाश में थीं। 

एक दिन दीदी बड़े अच्छे मूड में थीं। सबने सोचा कि दीदी के बारे में जानने का यही सही मौक़ा है। सेन्टर की सबसे पुरानी स्टूडेन्ट वैशाली ने कहा, “दीदी हम सब लोग जानना चाहती हैं कि आपको यह ट्रेनिंग सेन्टर चलाने की प्रेरणा कहाँ से मिली?”

यह सुनते ही दीदी की मुद्रा एकदम बदल गई। उनके चेहरे पर एक रंग आ रहा था और दूसरा जा रहा था। काफ़ी देर तक वह ऊहापोह में बैठी रहीं। फिर उन्होंने अपने साथ घटी घटना के बारे में बताना शुरू किया। सभी लड़कियाँ उनकी बातें सुन रही थीं। 

“माह का महीना था, कृष्ण पक्ष की काली अँधियारी रात। हम सब अपनी अपनी रजाइयों में दुबके हुए थे। उस दिन मेरे पिताजी किसी ज़रूरी काम से शहर गए हुए थे। घर पर मैं, मेरी माँ और मेरा छोटा भाई बस तीन लोग थे। 

“पूरे गाँव में ख़ामोशी का आलम था। कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें इस सन्नाटे को तोड़ देती थीं। चारों तरफ़ घना कोहरा छाया हुआ था। रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी थी मगर मुझे और मेरी माँ को नींद नहीं आ रही थी। पता नहीं क्यों एक अनजाना सा भय हम लोगों के मन में बसा हुआ था। 

“तभी हम लोगों को आँगन में धम्म से किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई। कोहरा इतना घना था कि आँगन में क्या गिरा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मेरी माँ ने उठकर लालटैन जलाई। जब तक हम लोग कुछ समझ पाते तब तक चार आदमी हमारे कमरे में घुस आए थे। सबने अपने चेहरों पर कपड़ा लपेट रखा था जिससे कोई उन्हें पहचान ना ले। 

“सबसे पहले एक आदमी ने मेरे छोटे भाई की गर्दन पर चाकू तान दिया और हम सबको ख़ामोश रहने की चेतावनी दी। फिर तीन लोगों ने मुझे दबोच लिया। मैंने उनकी पकड़ से छूटने की बहुत कोशिश की मगर तीन-तीन मुसटण्डों के सामने मेरी क्या चलती। वे सब मेरे जिस्म से अपने तन की प्यास बुझाने लगे। भाई के प्राणों के डर से माँ बुत बनी यह सब देख रही थी। 

“मेरी कराहें और चीखें पूरे कमरे में गूँज रही थीं। मेरी चीखें सुनकर मेरी माँ बोली, ‘एक-एक करके भाई, अभी मेरी बेटी केवल पन्द्रह साल की है।’ यह कहते-कहते उनका गला रुँध गया और वे फफक-फफक कर रो पड़ीं। मगर उन दरिन्दों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वे कई घन्टे तक मेरे जिस्म को नोचते और झिंझोड़ते रहे। 

“जाते-जाते वे यह चेतावनी देना नहीं भूले कि यदि तुम लोगों ने हमारे ख़िलाफ़ पुलिस में एफ़आईआर कराई तो तुम्हारे भाई की लाश किसी नदी-नाले में पड़ी मिलेगी। 

“उनके जाने के बाद मेरा भाई और माँ मुझसे लिपट गए। बहुत देर तक हमारा रुदन कमरे से गूँजता रहा। रोने के अलावा हम कर भी क्या सकते थे। 

“अगले दिन पिताजी शहर से लौट आए थे। माँ ने उन्हें पूरी रात बताई। वे मुझे लेकर तुरन्त थाने जाना चाहते थे। मगर माँ ने बेटे का वास्ता देकर उन्हें थाने नहीं जाने दिया। उन्होंने मुझे भी भाई की क़सम दिलाकर मेरा मुँह सिल दिया। 

“कहते हैं ख़बरों के पंख होते हैं। पता नहीं कैसे यह ख़बर पूरे गाँव में फैल गई अैर फिर वहाँ से आस-पास के गाँव में। मेरा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। मुझे देखते ही लोग तरह-तरह की बातें। शोहदे फब्तियाँ कसते। मुझे अपने शरीर से अपने अस्तित्व से घृणा सी होने लगी। इच्छा होती कि किसी कुएँ या पोखर में कूद कर जान दे दूँ। 

“उस समय मैं फ़र्स्ट ईयर में पढ़ रही थीं वह क़स्बा जिसमें मेरा कॉलेज था गाँव से छह किलोमीटर दूर था। अब शोहदों ने मेरा कॉलेज जाना दूभर कर दिया उनकी बातें, उनकी भद्दी फब्तियाँ, मेरा कलेजा चीर देतीं। मैं ख़ून के घूँट पीकर रह जाती। मैंने अपने साइकिल के कैरियर में एक मोटा डंडा रखना शुरू कर दिया था। 

“एक दिन मैं साइकिल से कॉलेज से लौट रही थी। दोपहर का समय था। मैं एक बाग़ के पास से गुज़र रही थी। तभी अचानक चार लड़के मेरी साइकिल के आगे आकर खड़े हो गये। सबके चेहरों पर कुटिल मुस्कान तैर रही थी। उनमें से एक लड़का मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला, “कहाँ जा रही हो मेरी जान, मेरे दिल की प्यास भी बुझा दो।” 

“मेरे तन-बदन में मानो आग लग गई थी। मैंने अपना हाथ छुड़ाकर कैरियर में से डंडा निकालकर उसके उस हाथ पर ताबड़तोड़ डंडा बरसाना शुरू कर दिया। पता नहीं कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई थी। मैं तब तक डंडा बरसाती रही जब तक उसका हाथ कई जगह से टूट नहीं गया। उसकी यह हालत देख उसके साथी वहाँ से रफ़ू-चक्कर हो गये थे। 

“इस घटना के बाद शोहदों की फब्तियाँ कम हो गई थीं। मुझे देखकर वे बचकर निकल जाते। इससे मेरा आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ गया था, मगर मन हर समय अशांत सा रहता। 

“क़स्बे से इंटर करने के बाद मैं और मेरा भाई पढ़ने के लिए शहर आ गए। मैंने बी.एससी. फ़र्स्ट ईयर में एडमीशन लिया भाई ने ग्यारहवीं क्लास में। 

“मेरी फिजिक्स प्रोफ़ेसर ने मुझे ऐनसीसी लेने की सलाह दी। मैंने पहले दिन जब ऐनसीसी की परेड में भाग लिया तो मुझे बड़ा आनन्द आया। पढ़ाई के साथ-साथ मैं ऐनसीसी परेड बिना किसी नागा के अटेन्ड करती। बी.एससी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के साथ-साथ मुझे ऐनसीसी का सी सर्टिफ़िकेट भी हासिल हुआ था। 

“समय पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। मैंने एम.एससी. फिजिक्स से करने का निश्चय किया। उस समय मेरा भाई बी.टेक. कर रहा था। अपनी कुछ क्लासमेट के साथ मैं जूडो करोटे सीखने जाने लगी। पाँच-छह महीने में ही मैंने जूडो कराटे के कई गुर अच्छी तरह से सीख लिए। ऐनसीसी और जूडो-कराटे ने मेरा आत्मविश्वास काफ़ी दृढ़ हो गया। मगर मैं अभी तक उस हादसे से पूरी तरह से नहीं उबर पाई थी। एक अजीब सी आग हर समय दिल में धधकती रहती। जब भी मैं ख़ाली होती मन बहुत अशान्त हो जाता। अक़्सर रात में सोते से जाग जाती और फिर कई-कई घन्टे नींद नहीं आती। 

“एम.एससी. करने के एक वर्ष बाद ही आयोग से मेरी नियुक्ति इसी शहर के एक गर्ल्स इंटर कॉलेज में फिजिक्स प्रवक्ता के पद पर हो गई। अब मैंने अपनी माँ और पिताजी को भी रहने के लिए शहर बुला लिया। बी.टेक. करने के बाद मेरे भाई को एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जाॅब मिल गई थी। मेरी अम्मा और पिताजी बड़े ख़ुश थे। मगर मेरे अन्दर प्रतिशोध की ज्वाला हर समय धधकती रहती जिससे कहीं भी मुझे सुकून नहीं मिलता। 

“एक दिन घर में बिना किसी को बताए मैं स्कूटी से अपने गाँव जाने के लिए निकल पड़ी। जेठ महीने की दोपहरी थी। चौपाल पर नीम के पेड़ की छाँव में कुछ लोग बैठे हुए थे। वह चारों दरिंदे भी वहाँ मौजूद थे। इतने वर्षों बाद भी उनकी तस्वीर मेरे ज़ेहन में बसी हुई थी। उन्हें देखकर मेरी आँखों में ख़ून उतर आया। 

“स्कूटी खड़ी कर मैंने अपनी स्टिक उठाई और उन दरिन्दों को सम्भलने का मौक़ा दिए बिना मैं उन पर टूट पड़ी। मैंने उन चारों को पटक-पटक कर स्टिक से जी भर कर मारा। मेरा यह चण्डी रूप देखकर चौपाल पर बैठे अन्य लोग भाग कर अपने-अपने घरों में दुबक गए। उन दरिन्दों की चीखें और कराहें चौपाल पर गूँज रहीं थीं। वे दया की भीख माँग रहे थे। मैंने ललकार कर कहा, ‘अगर तुममें कोई मर्द है तो आज मेरे शरीर को छूकर दिखाए।’ उन्हें जी भर कर मारने के बाद मैं वहाँ से लौट आई थी। 

“उस हादसे के बाद आज मेरे दिल को सुकून मिला था और वर्षों बाद पहली बार मैं रात को चैन की नींद सोई थी। 

“यह बात मुझे अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि लड़कियों के भय और कमज़ोरी का ही लोग ग़लत फ़ायदा उठाते हैं। मैं उनके दिलों में बसे भय को दूर कर, उनमें आत्मविश्वास भरना चाहती हूँ इसीलिए मैंने यह सेन्टर खोला है। मैं चाहती हूँ कि हर लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से इतनी मज़बूत हो जाए कि कोई भी उसके साथ छेड़छाड़ करने की हिम्मत न कर सके। क्या तुम लोग इस मुहिम में मेरा साथ दोगी?”

सभी लड़कियों ने दोनों हाथ उठाकर उनकी बात का समर्थन किया। उनकी आँखों में एक अनोखी चमक आ गई थी। आज पहली बार उनके चेहरे पर मुस्कान दिखाई दी थी। 

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