गोपनीय मिशन

15-12-2023

गोपनीय मिशन

सुरेश बाबू मिश्रा (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

 

होली के त्योहार में अब केवल तीन दिन शेष रह गए थे। रंजना की अपनी ससुराल में यह पहली होली थी। पिछले वर्ष ही उसकी शादी हुई थी। 

उसके पति विक्रम सिंह भारतीय सेना में सेकेण्ड लेफ्टीनेन्ट थे और उनकी तैनाती कश्मीर में पाकिस्तानी बॉर्डर पर थी। विक्रम होली पर घर आ रहे थे। रंजना ने अपनी ससुराल में होली मनाने की काफ़ी प्लानिंग की थी। उसकी ननद भी अपने मायके आई हुई थी। इस बार घर पर धूम-धाम से होली मनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। सबको विक्रम के आने का इंतज़ार था। 

रंजना अतीत की यादों में खो गई। बरबस उसकी आँखों के सामने वह घटना घूमने लगी जब वह विक्रम से पहली बार मिली थी। रंजना के पापा सरकारी अधिकारी थे। रंजना उनकी बड़ी बेटी थी। उनका छोटा बेटा आईएएस की तैयारी कर रहा था और उससे छोटी बेटी बीटेक कर रही थी। रंजना पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी थी इसलिए उसके पिता जी उसकी शादी के लिए बहुत चिन्तित थे। 

उसकी शादी के सिलसिले में ही आज विक्रम और उसका परिवार रंजना के घर उसे देखने के लिए आ रहा था। घर में उत्सव जैसा माहौल था। पापा, मम्मी, छोटा भाई और छोटी बहन सभी मेहमानों के स्वागत की तैयारी में लगे हुए थे। 

तभी एक गाड़ी रंजना घर के दरवाज़े पर आकर रुकी। मेहमान आ गए थे। पापा सबको आदरपूर्वक ड्राइंग रूम में लेकर आए। 

रंजना ऊपर कमरे में बैठी हुई थी। रंजना का दिल बुरी तरह धड़क रहा था। रंजना के कान ड्राइंग रूम में ही हो रही बातचीत की ओर लगे हुए थे। तभी माँ की आवाज़ आई, “रंजना मेहमानों के लिए चाय, नाश्ता लेकर आओ।” रंजना और उसकी छोटी बहिन ने मिलकर चाय बनाई। रंजना और उसकी छोटी बहिन ड्राइंग रूम में चाय नाश्ता लेकर पहुँचे। माँ ने हम दोनों का परिचय सभी से कराया। 

सबकी नज़र रंजना ओर उठ गईं। रंजना ने उड़ती-उड़ती एक नज़र विक्रम पर डाली और फिर अपनी नज़रें नीची कर लीं। विक्रम ने भी रंजना की तरफ़ देखा। चाय-नाश्ते के साथ सभी लोग आपस में बातचीत भी कर रहे थे। इसी बीच विक्रम की माँ ने रंजना की माँ के कान में फुसफुसा कर कुछ कहा। माँ मुस्कुराई और रंजना ओर देखते हुए बोली, “रंजना जाओ विक्रम को अपना स्टडी रूम तो दिखा दो।” 

रंजना उठकर चल दी। विक्रम भी रंजना साथ चल दिए। रंजना की छोटी बहिन भी चलने लगी, मगर माँ ने इशारे से उसे रोक दिया। 

रंजना और विक्रम स्टडी रूम में पहुँच गए। उन दोनों के बीच में औपचारिक बातचीत शुरू हो गई। अब रंजना   ने विक्रम को ध्यान से देखा, लम्बा छरहरा बदन, स्ट्रोंग मसल्स उन्नत ललाट और गोरा रंग। कुल मिलाकर वह बेहद हैंडसम था। यही है उसके सपनों का राजकुमार रंजना ने मन ही मन सोचा। 

वह इस बात से बेख़बर थी कि विक्रम एकटक उसी की ओर देखे जा रहा था। रंजना को चुप देखकर विक्रम ने पूछा, “कहाँ खो गई?” 

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है,” रंजना झेंपते हुए बोली। 

“एक बात कहूँ आपसे,” विक्रम ने रंजना की ओर देखते हुए कहा। 

“हाँ-हाँ कहिए,” रंजना बोली। 

“आप बहुत सुन्दर हैं।” 

उसकी बात सुनकर रंजना का चेहरा शर्म से लाल हो उठा। उसने अपनी नज़रें नीची कर लीं। 

कुछ देर तक विक्रम रंजना की ओर एकटक देखता रहा फिर उसने पूछा, “क्या आप मेरा दूसरा प्यार बनना स्वीकार करोगी?” 

यह अजीब-सा प्रश्न सुनकर रंजना अचकचा गई फिर उसने विक्रम की ओर देखते हुए पूछा, “मैं कुछ समझी नहीं। आप क्या कहना चाहते हैं?” 

“देखिए रंजना जी, मैं एक फ़ौजी हूँ। हर फ़ौजी का पहला प्यार उसकी मातृभूमि होती है। तो इस तरह आप मेरा दूसरा प्यार हुई ना,” विक्रम ने बड़े भोलेपन से कहा। 

उसकी बात सुनकर रंजना मुस्कुरा उठी। वह बोली, “हाँ मैं आपका दूसरा प्यार बनने को तैयार हूँ।” 

यह सुनकर विक्रम को चेहरा किसी फूल की तरह खिल उठा। वह बोला, “आप केवल सुन्दर ही नहीं बेहद समझदार भी हैं। मुझे ऐसा ही जीवन साथी चाहिए। मेरी ओर से इस रिश्ते के लिए हाँ है।” 

“और मेरी ओर से भी हाँ!” रंजना मुस्कुराते हुए बोली। 

फिर दोनों नीचे उतर आए। विक्रम की माँ उसे एक ओर ले गई और उसके कान में कुछ पूछा, विक्रम ने स्वीकृति में सिर हिला दिया। उसकी माँ का चेहरा ख़ुशी से दमक उठा। उन्होंने पति की ओर देखकर कुछ इशारा किया। 

विक्रम के पिता जी ने रंजना के पिता जी से कहा, “भाई साहब, मुझे यह रिश्ता मंज़ूर है।” 

यह सुनते ही सब ख़ुश हो गए और इस प्रकार रंजना शादी के बाद विक्रम के घर आ गई। 

रंजना अपनी ससुराल में बहुत ख़ुश थी। प्यार करने वाला पति, उसकी कल्पना से भी अधिक सुन्दर बँगला, बेटी की तरह चाहने वाले सास-ससुर और बड़ी बहिन जैसी ननद और क्या चाहिए एक लड़की को! 

शादी के कुछ दिन बाद ही विक्रम की छुट्टियाँ ख़त्म हो गई थीं और वह अपनी ड्यूटी पर चला गया था। उसके जाने के बाद कुछ दिन तक तो रंजना को घर बहुत सूना-सूना लगा था मगर शीघ्र ही उसने अपने आपको घर के कामों में व्यस्त कर लिया था। 

लगभग सात-आठ महीने बाद विक्रम होली पर घर लौट रहा था। इसलिए रंजना का मन ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था। वह इन्हीं विचारों में खोई हुई थी, तभी उसकी ननद उसके कमरे में आ गई। 

“यह क्या भाभी अभी से भइया की यादों में खोई हुई हो,” वे रंजना को छेड़ते हुए बोली। 

“ऐसी कोई बात नहीं है दीदी,” रंजना नज़रें नीची करते हुए बोली मगर उसकी आँखें कुछ चुग़ली कर रही थीं। 

वे दोनों बातचीत कर रही थीं तभी रंजना के मोबाइल की घंटी बज उठी।

“लगता है भइया का फोन है, आप बात करो मैं अभी आती हूँ,” यह कहकर उसकी ननद मुस्कुराते हुए बाहर चल गई। रंजना ने फोन अटेन्ड किया। फोन उसकी माँ का था। माँ काफ़ी देर तक फोन पर उससे बात करती रहीं। उसके बाद रंजना ने विक्रम को फोन किया, मगर विक्रम का फोन लगातार नॉट रिचेबल आ रहा था। उसने सोचा कि शायद ट्रेन में सिगनल नहीं आ रहे होंगे इसलिए फोन नहीं लग रहा है। 

विक्रम की ट्रेन ग्यारह बजे आने वाली थी। इसलिए घर के सब लोग जाग रहे थे। सब लोग सेन्ट्रल हाॅल में बैठकर टीवी देख रहे थे। जब साढ़े ग्यारह बजे तक विक्रम नहीं आया तो सबको चिन्ता होने लगी। विक्रम का फोन लगातार आउट ऑफ़ नेटवर्क कवरेज एरिया बता रहा था। 

रंजना के पास विक्रम के ड्राइवर का मोबाइल नम्बर था। अपनी सासु माँ से पूछकर रंजना ने उसे फोन लगाया कुछ देर ट्राई करने के बाद उसका फोन लग गया। रंजना ने उससे कहा कि मैं लेफ्टीनेन्ट विक्रम जी की पत्नी रंजना बोल रही हूँ। आपने विक्रम साहब को सुबह ट्रेन में बैठा दिया था। वे अभी तक घर आए नहीं हैं इसलिए हम लोगों को चिन्ता हो रही है। 

“मैडम साहब तो आज घर गए ही नहीं। वे तो एक गोपनीय ऑपरेशन पर हैं। एक ख़ाली बिल्डिंग में कुछ आतंकवादी छिपे हुए हैं। साहब के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी ने बिल्डिंग को चारों ओर से घेर रखा है। दोनों ओर से रुक-रुक कर फ़ायरिंग हो रही है। अब यह ऑपरेशन कब तक चले कुछ कहा नहीं जा सकता है मैडम,” यह कह कर उसने फोन काट दिया था। 

जब रंजना ने यह बात सबको बताई तो सब लोग घबरा उठे। 

विक्रम के पापा सबको समझाते हुए बोले, “घबराओ नहीं। जो कुछ होगा अच्छा ही होगा। रात काफ़ी हो गई इसलिए सब लोग अपने कमरे में जाकर सो जाओ। अब सुबह तय करेंगे कि हमें इन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए।” 

सभी लोग अपने-अपने कमरे में चले गए। रंजना बेड पर आकर लेट गई। वह सोने का प्रयास करने लगी मगर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। उसे रह-रह कर विक्रम की याद सता रही थी। उसने कई बार विक्रम और उसके ड्राइवर को फोन किया मगर दोनों का मोबाइल स्विच ऑफ़ आ रहा था। तरह-तरह के ख़्याल उसके मन में आ रहे थे। सुबह पाँच बजे के बाद उसकी आँख लग गई। 

सुबह किसी के दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनकर उसकी आँख खुली। उसने उठकर दरवाज़ा खोला। सामने उसकी ननद खड़ी थी। 

“उनका कोई फोन आया दीदी?” रंजना ने पूछा। 

“नहीं अभी तक तो कोई फोन नहीं आया। हम सबने भी फोन किया मगर विक्रम का मोबाइल लगातार स्विच ऑफ़ आ रहा है। ऐसा करो फ़्रेश होकर नीचे आ जाओ। हम लोग नाश्ते पर तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं,” उसकी ननद बोलीं। 

फ़्रेश होने के बाद रंजना नीचे पहुँची। उसकी ननद ने टेबल पर सबके लिए नाश्ता लगा दिया था। सब लोग नाश्ता शुरू करने ही वाले थे कि डोर बेल बज उठी। 

“इतनी सुबह कौन हो सकता है?” उसकी सासु ने कहा। 

उसकी ननद दरवाज़ा खोलने चली गई। उसने जैसे ही गेट खोला, सामने विक्रम को देखकर आश्चर्य से बहिन चिल्लाई, “मम्मी, भइया।” 

सब लोग उठकर खड़े हो गए। तब तक विक्रम अंदर आ चुका था। रंजना का चेहरा किसी फूल की तरह खिल उठा था। विक्रम की माँ ने उसे बाँहों में भर लिया। 

उसके पापा जी ने पूछा, “विक्रम तुम इतनी सुबह कैसे आ गए?” 

“पापा जी! ऑपरेशन चार बजे तक चला। ऑपरेशन में पाँच आतंकी मारे गए और बाक़ी चार गिरफ़्तार कर लिए गए। मेरी टुकड़ी के चार सैनिक भी गम्भीर रूप से घायल हुए। एक गोली मेरे कंधे को छूती हुई निकल गई। 

“मुझे मिलिट्री हॉस्पिटल ले जाया गया। मेरा ज़ख़्म ज़्यादा गहरा नहीं था इसलिए छह बजे मेरी छुट्टी कर दी गई। जब मैंने अपने लेफ्टीनेन्ट साहब को बताया कि सर! शादी के बाद मेरी पहली होली है, तो उन्होंने दिल्ली तक मुझे मिलिट्री के हैलीकाॅप्टर से छुड़वा दिया। तीन घंटे में मैं दिल्ली आ गया और फिर दिल्ली से टैक्सी द्वारा घर।” 

सबके चेहरे ख़ुशी से चमक उठे थे। रंजना लगातार विक्रम को देखे जा रही थी। उसकी आँखों में विक्रम के लिए गहरा प्यार उमड़ रहा था। विक्रम भी उसी की ओर देख रहा था। वे दोनों इस बात से बेख़बर थे कि सब उन दोनों की ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे और आँखों ही आँखों में एक-दूसरे को इशारा कर रहे थे। 

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