रतनारे नयन 

01-01-2023

रतनारे नयन 

सुरेश बाबू मिश्रा (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

बरेली में नकटिया नदी के किनारे, वह टीला आज भी जैसे लोगों को शंकर और तराना के क़िस्से सुनाने के लिए, भू-माफ़ियों से अपने को बचाये हुए है, जिस पर बैठ कर दोनों जीवन के सुनहरे सपने बुना करते थे। दुनिया की चिन्ता फ़िक्र से दूर दोनों यहाँ, इस एकान्त में अपनी ही दुनिया में खो जाते थे। शंकर सरोद बजाता था और तराना गाना गाती थी। सरोद और गाने की ध्वनि इस शान्त जगह में दूर-दूर तक गूँजती थी। 

शंकर की उम्र यही ग्यारह-बारह साल रही होगी। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार का किशोर था। उसके पिता की शहर में किराना की दुकान थी। शंकर देखने-भालने में बेहद सुन्दर और पढ़ने में काफ़ी तेज था। उसे सरोद बजाने का बड़ा शौक़ था। उसके पिता ने उसे यह सरोद उसके दसवें जन्मदिन पर उसे उपहार में दिया था। शंकर सरोद को हमेशा अपने पास रखता और उस पर नई-नई धुनें निकालता रहता था। 

तराना दस-ग्यारह साल की एक अल्हड़ किशोरी थी। छरहरा बदन, तीखे नयन नक़्श और गोरा रंग। सादा लिबास में भी वह बेहद सुन्दर लगती थी। तराना पढ़ने में तो औसत दर्जे की थी मगर वह गाती बहुत अच्छा थी। स्कूल के हर कार्यक्रम में वह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी। उसके अब्बू की शहर में साइकिल की दुकान थी। उसके दो बड़े भाई थे और दोनों तराना पर जान छिड़कते थे। वह घर में सबकी बहुत लाड़ली थी। 

शंकर और तराना एक ही मोहल्ले में रहते थे। दोनों के घरों के बीच यही कोई आधा फर्लांग का फ़ासला था। यह मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला था। यह उस समय की बात है जब शहर पर रोहेल सरदारों का शासन था, और सभी लोग आपस में बड़े मेल-जोल से रहते थे। शंकर और तराना बचपन से ही एक-दूसरे के साथ खेला करते थे। 

बचपन से वे कब किशोरावस्था में प्रवेश कर गए उन्हें ख़ुद भी कुछ पता नहीं चला। यह वह अवस्था थी जब उनके शरीर और स्वभाव दोनों में आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगे थे। तराना जब-तक गाती थी शंकर तब-तक मंत्र मुग्ध सा होकर उसे निहारता रहता। उसके मन में तरह-तरह के ख़्याल आते। इसी तरह जब शंकर सरोद बजाता तो तराना एकटक उसके चेहरे को देखती रहती। सरोद की मधुर ध्वनि तराना के दिल में कुछ गुदगुदी सी पैदा कर देती। 

स्कूल से लौटने के बाद दोनों इस टीले पर आकर बैठ जाते और दुनिया-जहान की बातें करते। बिना किसी नागा के वर्षों से दोनों का यहाँ मिलने और आपस में बातें करने का सिलसिला जारी था। दोनों की अपनी अलग दुनिया थी। उनकी इस दुनिया में रंगीन सपने थे और हसीन कल्पनाएँ। 

उधर समय का पंछी पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। शंकर बी.ए. में आ गया था और तराना इंटर में। मगर दोनों की दोस्ती और मुलाक़ातें अब भी बदस्तूर जारी थीं। 

शंकर की हल्की-हल्की दाढ़ी-मूँछ निकल आई थी। सीना चौड़ा हो गया था और मसल्स स्ट्रोंग। कुल मिलाकर वह बड़ा हैण्डसम लगता था। वह कब तराना के सपनों का हीरो बन गया था, तराना को भी पता नहीं चला था। 

उधर तराना में भी जवानी के लक्षण उभर आए थे। बड़ी-बड़ी आँखें, लम्बी नाक और रक्ताभ कपोल। वह देखने में बेहद हसीन लगती थी। 

शंकर और तराना घंटों एक-दूसरे के साथ रहते और एक-दूसरे की प्रशंसा करते नहीं थकते। अब दोनों प्यार की मज़बूत डोर में बँध चुके थे। 

शंकर के लिए तो वह इस जहाँ की सबसे हसीन लड़की थी, मगर एक चीज़ उसे बेहद खटकती थी वह थी तराना की आँखें। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी तो थीं मगर उनमें झील जैसी गहराई नहीं थी। वे कजरारी नहीं थीं। एक दिन बातों ही बातों में शंकर ने तराना से कहा, “तराना तू काजल क्यों नहीं लगाती है तेरी आँखों में अजीब सा सूनापन लगता है, वे कजरारी नहीं लगतीं।” 

तराना ने मुस्कुरा कर शंकर की ओर देखा और बोली, “तू ठीक कह रहा है शंकर। मैंने कई बार काजल लगाने की कोशिश की, मगर कोई भी काजल मुझे सूट ही नहीं करता है। काजल लगाते ही मेरी आँखों से पानी निकलने लगता है और वे लाल पड़ जाती हैं।” 

यह सुनकर शंकर ने एक गहरी श्वास ली। फिर वह दुखी स्वर में बोला, “काश तेरी आँखें काली कजरारी होतीं।”

“अगर तुझे मेरी आँखों की इतनी ही चिन्ता है तो शंकर तो तू ही मेरे लिए कोई काजल या सुरमा क्यों नहीं बना देता। हो सकता है तेरे हाथों का बना काजल या सुरमा मेरी आँखें कजरारी बना दें।” तराना इठलाते हुए बोली। 

यह सुनकर शंकर यकायक काफ़ी सीरियस हो गया था। उसने मन ही मन तय कर लिया था कि वह तराना के लिए सुरमा ज़रूर बनाएगा। 

तराना उसे छेड़ते हुए बोली, “क्या हुआ शंकर। उदास क्यों हो गया?”

“नहीं तराना ऐसी कोई बात नहीं है, तू तो बेहद हसीन है। तेरे चेहरे से तो मेरी नज़र हटती ही नहीं है,” वह मुस्कुराते हुए बोला। 

अब शंकर पर तराना के लिए सुरमा बनाने की धुन सवार हो गई थी। वह तराना के लिए ऐसा सुरमा बनाना चाहता था जैसा आज तक किसी ने नहीं बनाया हो। इस चक्कर में उसने सैकड़ों किताबें पढ़ डालीं, दसियों सुरमा बनाने वालों के यहाँ चक्कर लगाए तथा सैकड़ों हकीमों के घर की ख़ाक छानी। उसने सुरमा बनाने के कई नुस्ख़े आज़माए मगर बात नहीं बनी। शंकर ने हार नहीं मानी थी और वह लगातार अपने इस अभियान में लगा हुआ था। 

इस सबके बीच वह कई-कई दिन तक तराना से भी मिल नहीं पाता था। उसने अपने इस मिशन के बारे में तराना को कुछ नहीं बताया था इसलिए तराना कभी-कभी बेहद उदास हो जाती। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि शंकर इतना खोया-खोया सा क्यों रहता है। उसने शंकर से इस बारे में कई बार बात भी करनी चाही मगर शंकर कोई न कोई बहाना बनाकर बात को टाल जाता। वह तराना को सरप्राइज़ देना चाहता था। 

कई महीनों की कोशिशों के बाद आख़िरकार एक दिन शंकर की मेहनत रंग लाई। वह ऐसा सुरमा बनाने में कामयाब हो गया जिसको लगाने से आँखों में कोई जलन नहीं पड़ती थी और न ही आँखों से पानी निकलता था। सुरमा की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि उसे लगाने के बाद आँखें क़ुदरती काली लगने लगती थीं। 

शंकर ने कई दिनों तक इसे अपनी आँखों में लगाया। उसकी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं थी उसने ऐसा सुरमा बना लिया था जैसा आज तक किसी ने नहीं बनाया था। वह अपनी सफलता पर फूला नहीं समा रहा था। 

कॉलेज के बाद शंकर सीधा नकटिया नदी के किनारे उसी टीले पर पहुँचा। तराना पहले से ही वहाँ बैठी शंकर का इन्तज़ार कर रही थी। शंकर को देखकर उसका मुरझाया चेहरा ताज़े फूल की भाँति खिल उठा। 

तभी शंकर उससे बोला, “अपनी आँखें बन्द करो तराना। मैं तुम्हारे लिए एक नायाब तोहफ़ा लाया हूँ।” 

“कैसा तोहफ़ा? तराना ने हैरानी से उसकी ओर देखते हुए पूछा। 

“तू आँखें तो बन्दर कर,” शंकर मुस्कुराते हुए बोला। 

तराना अपनी आँखें बन्द करके बैठ गई। उसके चेहरे पर गहरी उत्सुकता साफ़ झलक रही थी। 

शंकर ने अपनी जेब से निकाल कर सुरमे की शीशी तराना के हाथों में रख दी और उससे आँखें खोलने के लिए कहा। 

तराना ने शीशी की ओर देखते हुए पूछा, “यह क्या है शंकर?”

“यह सुरमे की शीशी है तराना। कई महीने तक लगातार कोशिश करने के बाद मैंने अपनी तराना के लिए यह नायाब सुरमा बनाया है। इसे लगाने से तुम्हारी आँखें झील जैसी गहरी और काली रतनारी हो जायेंगी।” 

यह सुनकर तराना का चेहरा अनोखी ख़ुशी से चमक उठा था। उसने प्यार भरी नज़रों से शंकर की ओर देखा था। फिर दोनों बातों में मस्त हो गए थे। 

तराना ने सुरमा लगाना शुरू कर दिया था। वास्तव में वह बड़ा नायाब सुरमा था। इसे लगाने से न तो तराना की आँखें लाल हुई थीं और न ही उनमें से पानी निकला था। कुछ दिन सुरमा लगाने के बाद ही तराना की आँखों की सुन्दरता काफ़ी बढ़ गई थी। 

तराना के बड़े भाई क़ासिम की शादी हो चुकी थी। उसने बिसातख़ाने की दुकान कर ली थी। एक दिन अचानक उसकी नज़र तराना की आँखों पर पड़ी। उसने तराना से पूछा, “तुम्हें तो कोई काजल या सुरमा सूट ही नहीं करता था फिर तू यह कौन-सा सुरमा लगाने लगी है?”

तराना ने अपने भाई क़ासिम को सुरमा की पूरी कहानी बता दी। 

तराना की बात सुनकर क़ासिम के मन में यह विचार आया कि यदि शंकर इस सुरमे को बनाने का फ़ॉर्मूला बता दे तो वह यह सुरमा बनाकर अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा कमा सकता है। 

क़ासिम ने तराना से कहा, “तराना तुम शंकर से कहकर यह सुरमा बनाने का फ़ॉर्मूला मुझको दिला दो।” 

“तुम यह फ़ॉर्मूला लेकर क्या करोगे भाई? तराना ने हैरानी से क़ासिम की ओर देखते हुए पूछा।

“मैं इस फ़ॉर्मूला से सुरमा बनाकर उसे बेचकर पैसा कमाऊँगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह सुरमा बाज़ार में ख़ूब बिकेगा,” क़ासिम बोला। 

“मगर शंकर ने तो यह सुरमा सिर्फ़ मेरे लिए बनाया है। उसने इसके लिए बहुत मेहनत की है। हो सकता है वह यह फ़ॉर्मूला देने को तैयार न हो,” तराना ने शंका प्रकट की। 

“तुम्हें किसी तरह से शंकर को यह फ़ॉर्मूला मुझे देने के लिए राज़ी करना होगा तराना। क्या तुम अपने बड़े भाई के लिए इतना छोटा सा काम भी नहीं कर सकती हो?” क़ासिम ने चिरौरी की। 

तराना बोली, “ठीक है भाई मैं शंकर से बात करूँगी।” 

अगले दिन तराना ने शंकर को सारी बातें बताकर उससे वह फ़ॉर्मूला क़ासिम को देने को कहा। 

शंकर असमंजस में पड़ गया। उसने इस फ़ार्मूले के लिए कई महीने तक कड़ी मेहनत की थी। यह फ़ॉर्मूला उसने केवल तराना के लिए खोजा था। वह यह फ़ॉर्मूला किसी को नहीं देना चाहता था। 

तराना द्वारा बार-बार मान मनौबल करने पर वह सुरमे का यह फ़ॉर्मूला क़ासिम को देने को तैयार हो गया था। उसने सोचा कि वह तो तराना से प्यार करता है सुरमा तो उसने तराना की ख़ातिर बनाया था। अब जब तराना ही इसे क़ासिम को देने को कह रही है तो उसे बह फ़ॉर्मूला क़ासिम को दे देना चाहिए। उसने तराना से कहा, “ठीक है जब तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं कल फ़ॉर्मूला लाकर तुम्हें दे दूँगा। मैं तो तुम्हारी ख़ुशी में ही ख़ुश हूँ।”

तराना ने प्यार भरी नज़रों से शंकर की ओर देखा था। 

अगले दिन तराना ने शंकर से लेकर फ़ॉर्मूला क़ासिम को दे दिया। क़ासिम बड़ा ख़ुश हुआ। 

क़ासिम ने उस फ़ार्मूले पर सुरमा बनाकर उसको अच्छी सी सुरमेदानी में रखकर बाज़ार में बेचना शुरू किया। कुछ ही महीनों में वह सुरमा लोगों की पहली पसंद बन गया और उसकी ख़ूब बिक्री होने लगी। क़ासिम सुरमा बेचकर ख़ूब मुनाफ़ा कमा रहा था। 

इधर तराना और शंकर का प्यार दिनों दिन प्रगाढ़ होता जा रहा था। दोनों का टीले पर मिलना बिना किसी नागा के जारी था। एक दिन शंकर ने तराना की ओर देखते हुए कहा, “तराना तेरे नयन तो अब बड़े रतनारे हो गए हैं। यह झील सी गहरी आँखों से तेरी सुन्दरता में चार चाँद लग गए हैं।” 

यह सुनकर तराना खिल-खिला कर हँस पड़ी थी। उस सुनसान स्थान पर तराना की खनकती हुई हँसी दूर-दूर तक गूँज गई थी। 

वे दोनों अब एक-दूसरे का जीवन साथी बनने का सपना देखने लगे थे। 

उधर क़ासिम के सुरमा की बिक्री दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। शहर की सीमाओं को पार करती हुई सुरमे की ख्याति पूरे प्रदेश में फैल चुकी थी। अब इस शहर की पहचान सुरमे से होने लगी थी। क़ासिम ख़ूब मुनाफ़ा कमा रहा था। 

कभी-कभी क़ासिम के मन में यह ख़्याल आता कि यदि कभी शंकर ने किसी दिन सबक़ो यह बता दिया कि सुरमे का यह फ़ॉर्मूला तो उसका बनाया हुआ है तो मेरा सारा बना-बनाया खेल बिगड़ जाएगा। 

क़ासिम का ख़ुराफ़ाती दिमाग़ शंकर के ख़िलाफ़ तरह-तरह की योजनाएँ बनाने लगा। उसने अपने समुदाय के नौजवानों और धार्मिक नुमाइन्दों को यह बताया कि दूसरे समुदाय का लड़का शंकर उसकी भोली-भाली बहिन तराना को अपने प्रेमजाल में फँसाकर उससे शादी करना चाहता है। 

इससे उन लोगों में उत्तेजना फैल गई। सबने एक स्वर में कहा, “यह तो हमारे समुदाय का भारी अपमान होगा। इससे पहले कि शंकर और तराना कोई ग़लत क़दम उठाएँ हमें शंकर को सबक़ सिखाना होगा।” 

उधर इस सबसे बेख़बर शंकर और तराना अपने प्यार में मगन थे। उनका प्यार गंगाजल जैसा पवित्र और सोने जैसा खरा था। 

एक दिन शंकर और तराना टीले पर बैठे आपस में बातें कर रहे थे। तभी एक समुदाय के लोगों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। उन लोगों के हाथों में लाठी, डंडे और छुरियाँ देखकर शंकर और तराना के होश फ़ाख़्ता हो गये थे। 

तराना ने लोगों को यह बताने की कोशिश की कि शंकर और वह एक-दूसरे को गहरा प्रेम करते हैं। मैं शंकर के बिना नहीं रह सकती हूँ। शंकर का इसमें कोई दोष नहीं है।

मगर भीड़ में जुनून था और जुनून न्याय तथा दया की भाषा नहीं समझता। कुछ उन्मादी लोग शंकर की ओर बढ़े। 

शंकर ने तराना से कहा, “तुम भाग जाओ तराना, नहीं तो यह लोग मेरे साथ तुम्हें भी मार डालेंगे।” 

“नहीं मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी शंकर। जियेंगे तो साथ-साथ, मरेंगे तो साथ-साथ,” तराना चिल्लाई। 

तब तक वे लोग शंकर के काफ़ी नज़दीक पहुँच चुके थे। इससे पहले कि वे लोग शंकर पर हथियारों से बार करें शंकर ने नदी में छलाँग लगा दी थी। 

“मैं भी तुम्हारे साथ आ रही हूँ शंकर,” तराना चिल्लाई। लोग उसे पकड़ने के लिए दौड़े मगर तब तक तराना नदी में छलाँग लगा चुकी थी। नकटिया नदी की तेज़ धार में बहते हुए वे दोनों क्षण में ही बहुत दूर चले गए थे। 

भीड़ में मौजूद लोग काफ़ी देर तक बुत बने वहीं खड़े रहे, फिर वे वापस लौट गये थे। 

कई दिन बाद शंकर और तराना की लाशें शहर से कई मील दूर नदी के किनारे एक झाड़ी में मिली थीं। दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे। नदी की तेज़ धार भी उन्हें अलग नहीं कर पाई थी। कुछ ही दिनों में उन दोनों के प्यार के चर्चे दूर-दूर तक फैल गए। 

कहते हैं कि आज भी शंकर और तराना की अतृप्त आत्माएँ नकटिया नदी के उस टीले के आसपास भटकती रहती हैं। कई लोगों ने दोनों को टीले पर बैठे हुए एवं आपस में बात करते हुए देखा है। वे कहते हैं कि शंकर का सुरमा भले ही दूसरे नाम से ही सही, आज भी लोगों की आँखों को शीतल करता आ रहा है। इस शहर बरेली की पहचान बना हुआ है। जब-तक यह टीला, सुरमा रहेगा शंकर, तराना का अफ़साना फ़िज़ां में गूँजता रहेगा . . .

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