सहारे का सहारा
बीना रायसंजना तीस वर्ष की एक अविवाहित लड़की थी जिसे बहुत दौरे पड़ते रहते थे क्योंकि उसे मिर्गी की बीमारी थी। दो वर्ष पूर्व उसके पिता का साया उठ गया था और उसके भाई-भाभी दोनों ही बहुत स्वार्थी और चालाक थे। दोनों भाई-भाभी नौकरी का बहाना करके संजना और उसकी माँ का कोई ख़्याल नहीं रखते थे न ही उन्हें कभी अपने साथ रखते। पिता की मृत्यु के बाद उसकी माँ भी बहुत उदास रहतीं। कभी किसीसे वो कुछ बात भी करतीं तो उसमें भी अपनी बेटी के अविवाहित होने की ही व्यथा का ही हमेशा ज़िक्र किया करतीं। इस वजह से पड़ोस की औरतें भी उनसे ज़्यादा बात नहीं करना चाहतीं। क्योंकि एक ही बात और दुःख को सुनते-सुनते उनका भी दिल भर गया था।
शक्ल-सूरत और क़द-काठी से तो संजना बहुत अच्छी थी पर अपनी ऐसी बीमारी और स्वार्थी भाई-भाभी के व्यवहार के तनाव से वो अपनी उम्र से बहुत बड़ी व उदास लगती। विवाह करके अपना घर बसाने की चाहत तो हर लड़की की तरह उसे भी बहुत थी पर अपनी बीमारी, उदास ज़िंदगी और बीतती उमर के ख़्याल से उसने शादी के ख़्वाब देखने भी छोड़ दिये थे।
राहुल उसके घर में किराएदार था जो एक प्राइवेट फ़र्म में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर था उसे अभी तीन महीने ही हुए थे संजना के घर में किराए पर रहते हुए।
एक दिन इतवार के दिन राहुल ने संजना की माँ को किसी रिश्तेदार से संजना के अविवाहित रहने और उनके बाद उनकी बेटी की देखभाल की बात में रोते हुए सुना। वो फ़ोन रखने के बाद भी बहुत रोए जा रही थीं। राहुल बहुत नेक दिल इंसान था उससे रहा न गया और वो संजना के माँ के पास जाकर आख़िर पूछने ही लगा, “आंटी आप क्यूँ रो रही हैं।”
कितने दिनों से उनके सुख–दुख के बारे में किसी ने नहीं पूछा था सो राहुल के इतने हमदर्दी से पूछने पर वो और फफक पड़ीं और कहने लगीं, “बेटा कोई भी मेरी इस मरीज़ बेटी की शादी कराने वाला नहीं है। लगता है कि मैं भी अपनी बेटी की शादी देखे बिना ही गुज़र जाऊँगी।”
वो रोते हुए बहुत सारी बातें बोल रहीं थीं। उनकी असमर्थता और विलाप राहुल से बर्दाश्त न हुआ और वो सहसा बोल पड़ा, “मैं करूँगा आपकी बेटी से शादी।”
संजना की माँ ने एकदम रोना बंद करके राहुल को अजीब नज़र से देखने लगीं पर थोड़ी ही देर में पूछा, “क्या कहा बेटा? तुम?”
राहुल बोला, “हाँ आंटी मैं! क्या हुआ मैं संजना के लायक़ नहीं? हो सकता है मुझमें कुछ कमी हो पर यक़ीन मानिए मैं संजना का बहुत ख़्याल रखूँगा।”
“पर बेटा तुम्हारे माता-पिता?”
उसने कहा, “मैं मना लूँगा बहुत प्यार करते हैं वो मुझसे।”
संजना और उसकी माँ को एकदम यक़ीन नहीं हो रहा था। संजना की माँ फिर बोली, “तुम्हेंं तो पता है इसकी बीमारी . . . ”
राहुल ने कहा, “सब पता है आंटी। मैं सब देख, सुन और महसूस कर रहा हूँ।”
इस बात के बाद राहुल सिर्फ़ एक हफ़्ते बाद ही अपने घर जाने लगा। जाते वक़्त वो संजना की माँ से बोला कि आंटी वैसे तो मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे माता-पिता मुझे निराश नहीं कर सकते कभी भी पर फिर भी आप मुझे आशीर्वाद दीजिए की वो राज़ी हो जाएँ। उसने संजना की तरफ़ भी बहुत अपनेपन और प्यार से देखते हुए बाय बोला।
अब तो संजना का खोया हुआ आत्मविश्वास जाग उठा और वो बहुत ख़ुश रहने लगी थी। राहुल को घर गए सिर्फ़ चार दिन ही हुए थे जब उसने संजना और उसकी माँ से विडियो काल किया उनका हाल पूछने को तो संजना को वो देखता ही रह गया। वो इस चार दिन में ही काफ़ी निखर गई थी। संजना की माँ ने सहमते हुए ही पूछा कि बेटा बात की तुमने? वो बोला कि नहीं आंटी पर मुझे थोड़ा सा वक़्त दीजिए। यहाँ मैं आया तो देखा कि पापा बहुत बीमार चल रहे हैं पर माँ ने मुझसे कभी कुछ कहा नहीं क्यूँकि मैं परेशान हो जाता। आप समझ सकती हैं पर यक़ीन करें सब अच्छा ही होगा। संजना की माँ ने कहा, “बेटा रहने दो अभी, पर जब भी बताना कुछ भी छुपाना नहीं।”
एक हफ़्ता और बीता। इधर संजना की तबीयत में काफ़ी सुधार हुआ था और वो राहुल जैसे सुंदर और नेक दिल जीवनसाथी के सपने सजाकर बहुत सलीक़े से रहने लगी थी। अपनी और माँ का भी बहुत ख़्याल रखने लगी थी। पहले तो राहुल, संजना और उसकी माँ पर एक उपकार करने चला था पर अब उसे, संजना को निखरा हुआ देख, संजना से प्यार हो गया था। अपने पिता के स्वस्थ होने के बाद राहुल ने एक दिन पूरे विश्वास के साथ अपने माता-पिता को सारी बात बताई पर सब कुछ जानने के बाद उसके माता-पिता उसकी सोच के विपरीत बहुत नाराज़ हुए।
राहुल ने लाख कोशिश की पर उसके माता-पिता नहीं माने। पिता ने इतना तक कह दिया कि अगर शादी की उस लड़की से तो मुझसे कोई रिश्ता नहीं रहेगा।
राहुल, संजना और उसके माँ को फ़ोन तक नहीं कर पा रहा था और जब संजना की माँ ने फ़ोन किया तो वो रोने लगा।
दोनों माँ–बेटी फिर टूट गयीं; पर संजना ने राहुल को बहुत समझाया। वो सोचने लगी कि शादी उसके नसीब में ही नहीं है पर अपने प्रति राहुल का प्यार उसके जीने का संबल बन गया था। राहुल को अपने माता-पिता के कहने के अनुसार संजना के घर के बदले दूसरी जगह रहना पड़ा। पर वो एक दोस्त की तरह संजना से बात करता रहा। संजना उसकी बात और परवाह में ही बहुत संतुष्ट रहने लगी। अब वो अपनी दवा और खाना वक़्त पर लेती और उसे बहुत कम दौरे पड़ते।
उन दोनों को बात करते इस तरह आठ महीने बीत गए थे। इधर राहुल की शादी भी तय हो चुकी थी; भले वो ख़ुश नहीं था इस शादी से। संजना को पता चला तो वह थोड़ी उदास हुई पर फिर भी वो ख़ुद को बहुत ख़ुश रखने की कोशिश करती क्यूँकि वो राहुल जैसे नेकदिल दोस्त को अपनी उदासी से दुखी नहीं करना चाहती थी; साथ ही अब ख़ुद में जगा विश्वास खोना नहीं चाहती थी।
इधर राहुल की काल आनी बिल्कुल बंद हो गई। उसने सोचा कि शायद राहुल की शादी होने वाली है तो माता-पिता ने मुझसे बात बंद करने के लिए भी दबाव बनाया होगा।
वो अब आगे बढ़ रही थी और अपने आत्मविश्वास और तरक़्क़ी के लिए मन ही मन राहुल को धन्यवाद करती रहती। उसने पड़ोस में ही कुकिंग क्लास की और अपने ही घर में रेस्तरां खोल लिया। उसका बिज़नेस अच्छा चल पड़ा था। राहुल से बात हुए पाँच महीने हो गए थे। वो हमेशा यही प्रार्थना करती कि राहुल अपने जीवन में ख़ुश रहे।
एक दिन अपनी माँ के साथ वह कुछ सामान ख़रीदने बाज़ार गई थी तो उसके सामने अचानक राहुल बैसाखियों के सहारे खड़ा था। संजना को कुछ समझ नहीं आ रहा था . . . वो बस रोए जा रही थी। राहुल की माँ ने दुःख के साथ बताया कि राहुल ने एक एक्सीडेंट में अपने दोनों पैर गँवा दिए। संजना ने उसकी पत्नी के बारे में पूछा तो राहुल के मना करने पर भी राहुल के माँ ने बताया कि शादी हुई ही नहीं और इतना कह कर वह भरे गले से रुआँसी हो कर कहने लगीं कि कौन करेगा अब इससे शादी?
संजना ने उनको अपने गले से लगा लिया और कहा, “मैं हूँ न माँ, आप मेरी सौतन लाने की सोचिए भी नहीं।” और राहुल संजना की माँ से लिपट कर कहने लगा, “आंटी इसे समझाइए प्लीज़। मुझसे शादी करके ये अपने सपने बर्बाद न करे।
संजना की माँ ने कहा, “बेटा उसके सपने और चाहत तो तुम ही हो और वो तो तुम्हें ही अपना पति मानती है अब।”
इस तरह राहुल से शादी कर संजना अपने सहारे का सहारा बन गई।
1 टिप्पणियाँ
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दिल को छू जाने वाली कहानी। साधुवाद।