ख़ामोशियों और तन्हाइयों का समां
बीना रायये किस मुक़ाम पर आ गई थी
तेरे मेरे गहरे प्यार की दास्तां
कि जिसके पैरों तले न ज़मीन थी
और न सर पर आसमां
तुमने छोड़ा था ला कर
उस मोड़ पर हाथ मेरा
कि जहाँ से आगे बढ़ने पर
मिला मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ अँधेरा
और पीछे मुड़ने पर ना कोई
तैयार था देने को साथ मेरा
ये रूह थक गई थी चीख़-चीख़कर
तुम्हें आवाज़ देते देते
पर मेरे जिस्म नहीं मेरी रूह से
बेइंतेहा प्यार की बातें करने वाले
तुमने मेरी रूह की उन मुसलसल
नाले को सुनकर भी सुनी कहाँ
ये किस मुक़ाम पर आ गई थी
तेरे मेरे गहरी प्यार की दास्तां
न जाने क्यों तुमने मेरे दामन में
झूठ और धोखे की नींव पर
बना सिर्फ़ मकां ही नहीं बल्कि
पूरी की पूरी बस्ती भर दी थी
और मैंने भी उस बस्ती के
नाम अपनी बेरंग पर
थोड़ी साहस भरी पूरी की पूरी
ज़िंदगी ही कर दी थी
और उसी बस्ती में मैंने
उजालों से दुश्मनी
और तीरगी से दोस्ती कर ली थी,
वैसे तुम तो नहीं
पर तुम्हारे दिए ये अँधेरे
मेरे बहुत काम आए
क्योंकि इन्हीं अँधेरों ने
कराया तुम्हारे उन
खोखले वादों की
हक़ीक़त से मेरा सामना
तुम्हारे नाम पर अपनी
थोड़ी बसी और थोड़ी उजड़ी
दुनिया पूरी तरह बर्बाद कर
मैं सोचने लगी
कि किस तरह मैं तुम्हारे
शहद से भी मीठी
बातों के प्रवाह में बह चली थी
और फिर मैं किस तरह
मेरे लिए तुम्हारे उन झूठे
क़समों, वादों, परवाह और
आँसुओं से बुने जाल में फँसी थी
तुम्हें क्या बताऊँ किस तरह
तुम्हारे बुने उन जालों से
निकलने पर भी मुझे
कई बार तुम्हारी यादों ने
भी बुरी तरह छली थी
पर क्या करती मैं उन यादों का जो
मुझे दिए जा रहे थे सिर्फ
और सिर्फ अश्कों का रवां
ये किस मुक़ाम पर आ गई थी
तेरे मेरे गहरी प्यार की दास्तां
छोड़ दिया मैंने भी फिर
उसी झूठ की नींव पर बनी
बस्तियों में ही वो
तुम्हारे यादों का कारवां
ये किस मुक़ाम पर आ गई थी
तेरे मेरे गहरी प्यार की दास्तां
जिस तरह तुमने मुझे
सबसे बेगाना करके
फिर बेसहारा छोड़ा था,
ठीक वैसे ही मैंने भी
ज़ेहन के एक अँधेरे कोने के
कमरे में तुम्हारी उन
बेतुकी बातों और
ख़्यालातों को लॉक कर दिया
फिर तुम्हारे कुछ ख़्यालात और याद,
ज़ेहन की खिड़की से
अपने लाचार से हाथ
बाहर निकाल कर मुझे
ज़ोर ज़ोर से आवाज़ देने लगे थे पर
मैंने उन हाथों को भी
झटक दिया और झट से पटक दिया
वहीं तुम्हारे उन खोखले
वादों में ख़्यालातों को
और ख़ुद को ही बना
लिया अपना हम–नवां
ये किस मुक़ाम पर आ गई थी
तेरे मेरे गहरी प्यार की दास्तां
अब भी उन यादों के
कुछ बारीक़ टुकड़े
हालातों के हवा संग
उड़कर चले आते हैं
मुझ तक, पर मैं ज़रा भी
तवज्जो नहीं देती
तुम से जुड़ी कोई बातों
और जज़्बातों को
पर शुक्रिया तुम्हारा जो तुमने
मुझे ऐसा बना दिया कि
न उजाले मेरे दिल को लुभाते हैं
और न अँधेरे रूह को डराते हैं
और अनायास ही बहुत शांत
और शीतल रखती हैं मुझे
मोह माया से परे ये ख़ामोशियों
और तन्हाइयों का समां
नाले= चीख़ें; रवां=झरना; हमनवां=सहयात्री