गाँव का मेरा दालान
बीना रायगाँव का मेरा दालान
जहाँ बैठकर
घंटों मैं नादान
लिखा करती थी
कहानी और कविताएँ
उसे छोड़ आयी
एक झटके में
अब स्मृतियाँ
इस दालान की मुझे
देती रहती हैं सदाएँ
मैं ख़ुद ही रोकर
फिर हँसते हँसते
इस दालान से
दिल में बातें करती हूँ
और समझाती भी हूँ इसे कि
देख तू मुझे इतना
याद न आया कर
याद आकर तू मुझे
यूँ ना रुलाया कर
कोई समझे न समझे
पर तू तो समझाकर
मैंने तेरे साथ अपना
बेशक़ीमती वक़्त
बिताया था कभी
और तुझसे ही लिपटकर
अपना हाले दिल भी
सुनाया था कभी
तो मैं तुझे भला
कैसे भूल सकती हूँ
तू तो मेरे स्वभाव से
बिल्कुल नहीं अनजान