पुरुषोत्तम श्री राम
समीर द्विवेदी 'नितान्त'(छंद दोहा)
हृदय मध्य श्री राम रखि, मन द्वारे हनुमंत।
रसना नित सुमिरन करे, राघव नाम अनंत॥
ज्यों खाने पहुँचे प्रभु, शबरी माँ के बेर।
मुझ तक आने में नहीं, करना उतनी देर॥
ना ही मुझमें भक्ति है, ना ही मुझमें शक्ति।
राम मुझे भी दीजिए, केवट सी अनुरक्ति॥
राम विभीषण के सरिस, दो शरणागत भक्ति।
प्रभु हनुमत सी दीजिए, चरण कमल आसक्ति॥
जनमन के आराध्य हैं, परुषोत्तम श्री राम।
सहस नाम के तुल्य है, राम मात्र लघु नाम॥
अब लोचन हुइहैं सुफल, बाल रूप लखि राम।
नव्य, भव्य औ दिव्यतम, श्री अयोध्या धाम॥