प्रयोगधर्मी भी बड़ा अजीब है

15-11-2024

प्रयोगधर्मी भी बड़ा अजीब है

संजय एम. तराणेकर (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

यह प्रयोगधर्मी भी बड़ा अजीब है, 
काटने निकला है वोटों की फ़सल! 
इसे शिवाजी की मूर्ति से परहेज़ है। 
क्यों ऐसा करता है ख़ुद भी नहीं जानता, 
विदेशी मूल का है माटी को नहीं मानता। 
ख़ूब देता रहता है गारंटी अभी दी पाँच, 
चुनाव बाद भी नहीं करना की जाँच। 
 
यह प्रयोगधर्मी भी बड़ा अजीब है, 
काटने निकला है वोटों की फ़सल! 
यह लहराता है हर जगह संविधान, 
इसे दिखता हर तरफ़ ही व्यवधान। 
सरकार में कुछ अच्छा नहीं चल रहा, 
इसका दाना दस साल से न गल रहा! 
झूठ से ही इसका कारवां है चल रहा। 
 
यह प्रयोगधर्मी भी बड़ा अजीब है, 
काटने निकला है वोटों की फ़सल! 
ये चाह रहा जाति से ही पाऊँ ख्याति, 
हर बार भाग्य में इनके अवनति आती! 
इन्हें सकारात्मक राजनीति नहीं भाती। 
हरियाणा में दिखी आँधी और सुनामी, 
इन्हें मिली हार वो भी थी नामी-गिरामी। 

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