मिलने जुलने का इक बहाना हो

01-03-2019

 मिलने जुलने का इक बहाना हो

स्व. अखिल भंडारी

 मिलने जुलने का इक बहाना हो
बरफ़ पिघले तो आना जाना हो

दिन हो छुट्टी का और बारिश हो
दोस्त हों और शराब खाना हो

अजनबी था मगर वो ऐसे मिला
जैसे रिश्ता कोई पुराना हो

क्यों उठाते हो बोझ यादों का
भूल जाओ जिसे भुलाना हो

देस परदेस में फ़रक क्या है
आब-ओ-दाना हो आशियाना हो

अब तो यह घर पराया लगता है
अब कोई दूसरा ठिकाना हो

1 टिप्पणियाँ

  • 3 Feb, 2024 08:44 AM

    बहुत सुंदर गहरा चिंतन, अदभुत,भाव के सभी रंग समेटे आपकी कविताए

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