कभी तो अपनी हद से निकल
स्व. अखिल भंडारीकभी तो अपनी हद से निकल
आ तू मेरे साथ भी चल
पानी में आ कर भी देख
न सूरज की धूप में जल
दे उस को आवाज़ तो दे
उस की गली से यूँ न निकल
कुछ नुक्सान तो लाज़िम था
उस की फ़ितरत मेरा दिल
कौन है तेरे साथ न देख
चल तू अपनी राह पे चल
दुनिया की रफ़्तार न देख
तू ख़ुद अपनी चाल बदल
देख उस को इल्ज़ाम न दे
सोच तू उस का रध-ए-अमल
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