कुछ अधूरे अफ़साने
प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’
कुछ अधूरे अफ़साने, दिल में बसे रह गए,
जिन्हें कभी लिख न पाए, वो क़िस्से बनकर रह गए।
हर मोड़ पर तेरी याद, दिल को तड़पाती रही,
हमेशा की तरह ये सिलसिले अधूरे रह गए।
हर लफ़्ज़ में बसी थी तेरे प्यार की मिठास,
लेकिन उस मुक़ाम तक पहुँच न सके,
जहाँ मिलना था, वहीं यादें रह गईं,
वो शामें, वो बातें, फ़ज़ाओं में अफ़साने अधूरे रह गए।
ख़्वाबों में तेरा चेहरा, आज भी सजीव लगता है,
पर हक़ीक़त में, तेरी कमी दिल को चुभती है।
हर पल का साथ चाहा था, पर वो नसीब न हुआ,
हमारे प्यार के ज़माने अधूरे रह गए।
कुछ क़िस्से जो दिल में दबाकर रखे थे,
अचानक दूरी से उन्हें जताने अधूरे रह गए।
कुछ अधूरे अफ़साने, दिल में बसे रह गए,
जिन्हें कभी लिख न पाए, वो क़िस्से बनकर रह गए।