आ जाना दिकु
प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’सुनो दिकु . . .
कभी तुम्हें ग़म सताये
तो आ जाना
कभी मेरी यादें चिल्लाए
तो आ जाना
कभी दिख जाए परछाईं में चेहरा मेरा
कभी याद आये तुम्हारे लिए वो रात का पहरा मेरा
कभी आँखों में नींद ना आये
तो आ जाना
कभी दर्द आँखों से मुस्कुराए
तो आ जाना
जानते हैं बहुत ही साहसी हो तुम
अपने चेहरे की उदासी बख़ूबी छुपाती हो तुम
कभी यह मुस्कुराहट साथ छोड़ जाए
तो आ जाना
प्रेम आज भी वहीं खड़ा है तुम्हारे इंतज़ार में
कभी तुम्हारा सब्र अपनी सीमा तोड़ जाए
तो आ जाना
(प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए)