कब तक रहेगा ये अँधेरा
प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’
कब तक रहेगा ये अँधेरा,
कभी तो सवेरा आएगा,
तेरी राह में बिखरे हैं ये तारे,
कभी तो चाँद मुस्काएगा।
ख़ामोशी की इस रात में,
तेरा नाम ही हर साज़ है,
दिल कह रहा है ये मुझसे,
कभी तो तेरा पैग़ाम आएगा।
आतुर हैं आँखें तेरी राह में,
तेरी तस्वीर की परछाईं में,
कभी तो ख़त्म होगा ये इंतज़ार,
कभी तो मिलन का पल आएगा।
कब तक रहेगा ये अँधेरा,
कभी तो सवेरा आएगा,
तुझसे लिपटकर बेतहाशा रोने का सपना,
कभी तो सच हो जाएगा।