कविता का आज का दौर 

15-11-2024

कविता का आज का दौर 

पवन त्रिपाठी (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

अभी जो दौर चल रहा है
वो यूँ ही गुज़र जायेगा
एक परिंदा जो उड़ा था
वो फिर वापस न आएगा। 
 
हर मोड़ पर ठहर कर देखना, 
शायद कोई अपना नज़र आयेगा। 
कुछ खो कर कुछ पाने का ये सिलसिला, 
बस यूँ ही चलता ही जायेगा। 
 
अब जो परिंदा उड़ेगा
वो आसमान को छूता जायेगा
हसरतें उसके साथ चलेंगी
वह उड़ान भरता जायेगा
आसमान में परिंदों का सिलसिला
बस चलता जायेगा! 
 
वक़्त की मुट्ठी में
यह सच बंधता जायेगा
एक लम्हा आगे और
एक पीछे रह जायेगा
न जाने किस घड़ी में तेरे
क्या मोड़ आएगा
 
अभी जो दौर चल रहा है, 
वो यूँ ही गुज़र जायेगा। 

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