अनजाना सफ़र

01-07-2024

अनजाना सफ़र

पवन त्रिपाठी (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कुछ ख़्वाहिशों को
मुट्ठी में भरकर
नींद को बिस्तर
पर छोड़कर
दिन रात सफ़र तय करने
अब पग कहाँ
यह ठहरेंगे? 
 
अब वही सफ़र
अनजाना सा
एक खोयी हुई कहानी
हर आँख उसे ढूँढ़ती
एक जगी हुई ख़ुद्दार जवानी! 
 
न जीत और न हार
किससे होगी इश्क़ की गुहार
बस एक विवशता
और ख़्वाहिश पाने की हुंकार
अब कहाँ यह पग ठहरेंगे? 

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