अनजाना सफ़र
पवन त्रिपाठी
कुछ ख़्वाहिशों को
मुट्ठी में भरकर
नींद को बिस्तर
पर छोड़कर
दिन रात सफ़र तय करने
अब पग कहाँ
यह ठहरेंगे?
अब वही सफ़र
अनजाना सा
एक खोयी हुई कहानी
हर आँख उसे ढूँढ़ती
एक जगी हुई ख़ुद्दार जवानी!
न जीत और न हार
किससे होगी इश्क़ की गुहार
बस एक विवशता
और ख़्वाहिश पाने की हुंकार
अब कहाँ यह पग ठहरेंगे?