जीवन और संघर्ष
डॉ. नवीन दवे मनावतउलझे-सुलझे
लम्हों में
जीवन की भागदौड़ में
न जाने कितने अतीत गुज़ारें
हमने आज तक
फिर वही
यक्ष प्रश्न हमारे समक्ष
आ पहुँचता है
कि आदमी आख़िर टूटता क्यों है?
बिखरता क्यों है?
जीवन इतनी
पराकाष्ठा में पहुँच जाता है
जिसकी परिकल्पना
नहीं करना चाहता है आदमी
नहीं करना चाहता है
उससे समझौता
पर जीवन में
अचानक घेर देती
उदासी
तबाह करने के लिये
विनष्ट करने के लिये
उत्तर-दक्षिण ध्रुव
सम अंधकार में
पा लेता है अपने को
आदमी
खोजना चाहता है
जिजीविषाओं को
हर पल
हर व्यक्तित्व मे
आखिर मिलती है बुनी हुई वही
रस्सी
जिससे टाँगना चाहता है
अपनी संपूर्ण जिजीविषाओं को
यही है यक्ष प्रश्न
हमारे समक्ष
आज भी.......
7 टिप्पणियाँ
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बहुत ही खूब....।।
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Nice sir
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क्या गजब लिखा है ।
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उत्कृष्ट
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उत्कृष्ट
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बहुत ही सुन्दर लिखा है
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बहुत खूब लिखा है सरजी।