होली की आग
डॉ. नवीन दवे मनावतहोली की आग
वही रहती है
जो चूल्हे की
जो हवन कुंड की
और निर्दोष
जलती नारियों की देहाग्नि
जो भभकती है
आज समाज में
(अनवरत जल रही है)
होलिका की भाँति
हवि बनने को आतुर हैं
आज की अबलाएँ
चिंतन विलक्षण है?
पर सच है।
आग वही है
जो आतंक से
आती धूमाग्नि के सदृश विकराल;
आग वही जो
बेज़ुबान की ज़ुबान खोलने पर
आतुर है।
पर धूम रहित अग्नि है।
आज की आग
बस आग है
जो जलाती है
केवल और केवल
मानवता को
उस असुर की तरह
जो केवल मुख खोले
निरीह आग का प्रदर्शन करता है।
और भस्म करता है
संपूर्ण आह! को