भारत से नये स्वप्न लिये कैनेडा पहुँची, एक आधुनिक स्त्री की यात्रा 

15-10-2025

भारत से नये स्वप्न लिये कैनेडा पहुँची, एक आधुनिक स्त्री की यात्रा 

इन्दिरा वर्मा (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

सम्पादकीय टिप्पणी: यह आलेख एक आधुनिक भारतीय स्त्री की आत्मकथात्मक यात्रा को सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में प्रस्तुत करता है। इसमें नारी-विमर्श, शिक्षा, और सामाजिक परिवर्तन के सूत्रों को आत्मानुभूति के माध्यम से बुना गया है। संस्मरण की शैली में लिखा गया यह आलेख पाठकों को न केवल एक स्त्री के संघर्ष और उपलब्धियों से परिचित कराता है, बल्कि आधुनिक स्त्री की पहचान और भूमिका पर भी विचार करने को प्रेरित करता है। 

—सुमन कुमार घई


कैनेडा आने के कुछ ही दिन बाद यह समझ में आने लगा कि जो भी अपने पिछले जीवन के अनुभव रहे, उनमें कुछ और, बहुत कुछ और मिला कर आगे बढ़ना होगा तभी अपना देश, अपना परिवार छोड़ देने का कुछ परिणाम, कुछ लाभ मिल सकता है। या यूँ कहें कि अपना देश छोड़ने का दुख कुछ कम हो सकता है। क्या है वह कुछ और? इधर उधर देखा, कुछ जाना, समझा। 

कैनेडा में equality (समानता) आंदोलन ज़ोरों पर था, स्त्रियों को वोट देने के अधिकार, आर्थिक अधिकार, तथा अन्य सामाजिक बदलाव आ रहे थे। एक पत्रिका Chaitelaine (शैटेलेन) नाम से निकल चुकी थी जिसका झुकाव feminism (नारीवाद/अधिकार) की ओर था तथा स्त्रियों की भिन्न प्रकार की चुनौतियों आदि को उसमें स्थान दिया जाता था। इसी कारण पढ़ने वालों में स्त्रियों की संख्या बहुत अधिक थी, जागरूकता बढ़ रही थी। स्त्रियों को बड़े तथा प्रभावशाली काम करने के अवसर मिल रहे थे। संगठन (unions) बन गईं थीं तथा स्त्रियाँ अपने अधिकारों की माँगकर रही थीं। शिक्षा के ऊपर बहुत ध्यान दिया जा रहा था। 

इस माहौल में आकर बहुधा यह विचार आना स्वाभाविक ही था कि कहाँ से आकर कहाँ गिरे, अब कहाँ जायें? 

फिर कमर कस के तैयार होने के सिवा कोई रास्ता नहीं दिखा। भारत में एक वर्ष कॉलेज में पढ़ाया था, वह काम आ गया! 

पता चला कि स्कूलों में केवल पश्चिमी पहनावा ही पहन सकते हैं, अब? ख़ैर इन्टरव्यू में तो साड़ी ही पहनी और वहाँ ४-५ गोरे महानुभाव अधिकतर भारत, तथा मेरे यहाँ के अनुभवों की बात करते रहे और नौकरी मिल गई। 

पहनावे की दुविधा बनी रही परन्तु उसे अहम ना बनाकर शिक्षा के माध्यम से दूसरा ही मोड़ देने का प्रयास जारी रहा। 

अर्थात् अन्य शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को अपने भारतवासी होने का अर्थ यदा-कदा बताती रही! इस प्रयास का लाभ यह रहा कि अन्य स्कूलों में मुझे बुलाया गया अपने देश की भाषा व विशेषतायें बताने के लिये। इन अवसरों का मैंने भरपूर लाभ उठाया और अपने महान देश के गुण गाये। 

इस स्थान पर पहुँच कर जीवन में और बहुत सी बातें होने लगीं। दृष्टि का विस्तार कुछ बढ़ा, साथ-साथ यह इच्छा हुई कि यहाँ यानी उत्तरी अमेरिका की सभ्यता से भी कुछ सीखना चाहिये। स्कूल के बच्चों के साथ सम्बन्ध तो बना ही रहेगा। 
शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये सरकार से आर्थिक सहायता भी मिल रही थी! मुझे आर्थिक तो नहीं परन्तु हर सप्ताह यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिये छुट्टी की सुविधा दी गई, जिससे मुझे आने-जाने तथा पढ़ाई करने के लिये समय मिलता रहा और मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकी। मेरी तरह देश में अनेक स्त्रियों ने इस सरकारी नियम का लाभ लिया, तथा अपने अपने क्षेत्र में उन्नति की। 

शिक्षा का लाभ प्रत्येक पीढ़ी तथा सारे समाज को मिलता है। हम सब देख रहे हैं कि आज की बेटियों के काम अद्भुत हैं, जैसा कभी सोचना भी कठिन था, वही काम हर क्षेत्र में हमारी बेटियाँ बहुयें कर रही हैं। मेरी अपनी पोतियाँ मेडिकल, इन्जीनियरिंग, आदि में तो काम कर ही रही हैं, साथ ही विज्ञान, मनोविज्ञान, इतिहास आदि में हो रहे नये-नये अनुसंधान, भविष्य में आ सकने वाली समस्याओं को दूरदर्शिता से सुलझाने के उपाय निकाल सकें, इस प्रयास में भी लगीं हैं। 

इस बीच कैनेडा में भी शिक्षा के प्रति लोगों की राय बदली। शिक्षा, मानसिक उन्नति व सामाजिक उत्थान में सम्बन्ध का महत्त्व समझ में आने लगा। उच्चतर शिक्षा की ओर रुचि बढ़ने लगी और बड़ी संख्या में लोग ऊँची शिक्षा पाने लगे। समाज में सुधार तो निश्चित था, हाई स्कूल तक शिक्षा निःशुल्क हो गई। बच्चों के लिये family allowance (पारिवारिक भत्ता) का भी नियम था जो प्रतिमास दिया जाता था। 

साथ ही कर्मस्थल पर पुरुष-स्त्रियों के वेतन में भेद, नौकरी में आगे न बढ़ पाने के कारण असंतोष तथा कुछ अन्य भेदभाव भी बने रहे। 

इसी दशक में कैनेडा व ओंटारियो में मानवाधिकार संहिता (human rights code) पारित हुआ, जिसके कारण अनेक वर्ग, क्षेत्र या परिस्थिति में किसी प्रकार का भेद-भाव वर्जित माना गया। जैसे यदि आप के साथ स्त्री होने के कारण, रंग-भेद के कारण या जाति-भेद तथा और भी कोड में सम्मिलित स्थितियों के कारण भेद-भाव होता है तो आप मानवाधिकार कार्यालय (human rights office) में शिकायत कर सकते हैं और उसकी पूर्ण रूप से सुनवाई होगी! इस से भी स्त्री वर्ग को एक और माध्यम मिला अपनी आवाज़ उठाने का। 

मुझे इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में काम करने का अवसर भी मिला, इस दौरान मैंने इस विधेयक (legislation) को समझ कर उसे अनेक अवस्थाओं में कैसे लागू करना है, स्वयं समझा तथा समझाया। तथा अनेक संस्थाओं को शिक्षित करने का अवसर मिला। 

१९८०-९० के दशक में रोज़गार में समानता (emplyment equity) नियम पास किया गया जिसके अन्तर्गत मैंने पुलिस विभाग में काम किया और एक अलग ही अनुभव प्राप्त किया! 

आधुनिक स्त्री की चुनौतियाँ आज भी कम नहीं हैं, नया समय नई चुनौतियाँ लाता रहेगा। आशा और विश्वास यह है कि अपनी सूझ-बूझ तथा सामाजिक रुकावटों से ना डर कर आगे बढ़ते रहने के लिये आधुनिक स्त्री तत्पर रहेगी। 

अवकाश प्राप्त करने के बाद मैंने अपने बचपन के प्यार संगीत की ओर रुझान किया, कुछ संस्मरण लिखे, एल्बम बनाये और आज भी कर रही हूँ, जहाँ तक हो सका नई पीढ़ी को कुछ नई कुछ पुरानी आवश्यक बातें बताती रहती हूँ ताकि कुछ यादें, धुँधली ही सही उन्हें इधर-उधर पड़ी मिलती रहें। 

जो कुछ अनुभव मैंने वर्षों में पाया, उससे यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक स्त्री का मूल स्वभाव केवल अपने लिये आगे बढ़ना नहीं, बल्कि समाज के लिये भी मार्ग प्रशस्त करना है। आधुनिक स्त्री की प्रकृति (ethos) यह है कि वह परंपरा और आधुनिकता दोनों को जोड़कर एक संतुलन बनाती है। वह शिक्षा, आत्मनिर्भरता और न्याय को अपने जीवन का मूल मानती है। साथ ही, संवेदनशीलता और सम्बन्धों की गरिमा को भी सँजोती है। आधुनिक स्त्री अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती है, लेकिन दूसरों को भी अवसर देने और प्रेरित करने में पीछे नहीं रहती। यही दृष्टिकोण उसे न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी परिवर्तन का वाहक बनाता है। 

यही आधुनिक स्त्री की सच्ची पहचान है—वह अपने अतीत की स्मृतियों से शक्ति पाती है, वर्तमान की चुनौतियों से जूझती है, और भविष्य के लिए एक नई दिशा गढ़ती है। 

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