अरे कोई तो बतलाओ
विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'किसने किया शृंगार प्रकृति का
अरे, कोई तो बतलाओ!
डाल-डाल पर फूल खिले हैं
ठण्डी सिहरन देती वात
पात गा रहे गीत व कविता,
कितने सुहाने दिन और रात
मादकता मौसम में कैसी,
अरे, कोई तो समझाओ।
खेत-खेत में बिखरा सोना
कौन लुटाये बन दातार
रसबन्ती, गुणबन्ती देखो
धरा करे किसकी मनुहार
रंग-महल सी बनी झोंपड़ी,
कारण कैसा, समझाओ।
स्वागत में किसके ये मन
खड़ा हुआ है बन के प्रहरी
उजड़ा-उजड़ा सँवरा फिर से
बात समझ ना आये गहरी
मेरे मन की, तेरे मन की,
गुत्थी अब तो सुलझाओ।
भ्रमरों का मधुरिम गुंजन
और तितली का मँडराना
चप्पा-चप्पा बरसे अमृत
नहीं कोई भी बिसराना
आया है 'ऋतुराज' आज अब,
स्वागत में कुछ तो गाओ।