आधुनिक परिवेश में नैतिक मूल्यों का हनन

15-08-2025

आधुनिक परिवेश में नैतिक मूल्यों का हनन

बबिता कुमावत (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

आधुनिक परिवेश में नैतिक मूल्यों का हनन होना एक बहुत बड़ी चिंता का गंभीर विषय है। इसका सबसे बड़ा कारण यही नज़र आता है कि हमारे देश में पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति का अंधानुकरण किया जा रहा है व भारतीय संस्कृति का क्षरण हो रहा है। 

नैतिक शिक्षा का अभाव होने से युवाओं में नैतिक मूल्यों का विकास नहीं हो पा रहा है। 

नैतिक मूल्यों के विकास में माता, पिता व अध्यापकों की भूमिका जितनी होनी चाहिए, शायद उस स्तर तक नहीं हो पा रही है। 

नैतिक मूल्यों के अभाव के कारण समाज में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ पैदा हो रही हैं। भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, बेईमानी, रिश्वतख़ोरी जैसे मुद्दे आए दिन अख़बारों में पढ़ने को मिलते है। जिसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। 

इसका एक कारण भौतिकवाद और व्यक्तिवाद है, एक दूसरे से आगे निकलने की अंधाधुंध होड़ व स्वयं की भौतिक सुख सुविधाओं में बेशुमार वृद्धि। इंसान का अपने आप तक सीमित होने के कारण भावनाओं में गिरावट आ रही है। दृष्टिकोण बदल गए हैं, समाज में एक सुखवादी दृष्टिकोण की परंपरा चल पड़ी है। 

उसके लिए इंसान अपने नैतिक मूल्यों को भूल कर किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। नैतिक मूल्यों का अभाव होने से अच्छे, बुरे का निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो रही है। 

क्योंकि नैतिक मूल्य ही वे मूल्य होते हैं जो मनुष्यों में गहराई तक समाहित होते है व बच्चों, युवाओं का मागदर्शन करते हैं। ईमानदारी से जीवन जीने का ढंग सीखाते हैं। दैनिक संबंधों को विकसित करते हैं। ये किसी भी व्यक्ति के चरित्र के अनिवार्य तत्त्व कहे जा सकते हैं। नैतिक मूल्य एक ऐसे लक्ष्य होते हैं जो समाज के मानदंडों पर आधारित होते हैं। समाज के विकास के सभी चरणों के अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण घटक हैं। 

इस युग में नैतिक मूल्य एक गहरे संकट से जूझ रहे हैं एक संकीर्णीकरण के दौर से गुज़र रहे हैं। 

वर्तमान में तकनीकी से संचालित परिदृश्य ने एक अच्छे और स्थायी आयाम को ढक दिया है। नैतिक दुविधाएँ व समाज से अलगाव की भावनाएँ बढ़ गई हैं। जिससे नैतिक मूल्य व सद‌ाचरण हाशिए पर चले गए हैं। ऐसे नैतिक मूल्यों को विकसित किए जाने चाहिएँ जो बहुआयामी निहितार्थों को अभिव्यक्त करें व एक अच्छे व समृद्ध समाज का निमार्ण करने में योग दे सके। 

क्योंकि वर्तमान में लोग एक अच्छा जीवन पाने के लिए नैतिकता को ताक पर रख रहे हैं, नैतिक मूल्यों का हनन कर रहे हैं। नैतिकता पूर्ण व्यवहार पर खरे नहीं उतर रही है, चूँकि अच्छा जीवन पाने की यह ख़ुशी लंबे समय तक क़ायम नहीं रह सकती है। 

उच्च गुणवत्तायुक्त जीवन जीने के लिए समग्र समाज को नैतिक मूल्यों के आयामों की व्यापकता पर ज़ोर देना होगा। 

भौतिकता की इस दौड़ में बालक व युवा नैतिक-शून्य होते जा रहे हैं उन्हें समाज की सही धारा में लाने के लिए मार्गदर्शित करना होगा, दिशानिर्देशित करना होगा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, निस्स्वार्थता जैसे मूल्यों का सार व महत्त्व समझाना होगा, नैतिक मूल्यों से ज़्यादा भौतिकता व व्यक्तिवाद के स्थापित आयामों पर रोकथाम लगानी होगी, अच्छे जीवन का विचार सिर्फ़ धन, शक्ति अर्जित करने तक सीमित ना रख कर नैतिक मूल्यों की महत्ता स्थापित व सिद्ध करनी होगी। वर्तमान परिवेश में चारों तरफ़ अशांति ही नज़र आती है। 

मनुष्य स्वयं इस उलझन व पसोपेश में रहता है कि ‘जीवन कैसे जीया जाए’ यहाँ तक कि माता पिता की व्यस्तता भी इतनी बढ़ गई है वो भी पारिवारिक परिस्थितियों या सांसारिक कठिनाइ‌यों के कारण बेबस नज़र आते हैं व बच्चों को समय नहीं दे पाते है, महिलाएँ भी ‘वर्किंग वूमन’ होने के कारण बच्चों की परवरिश पर ध्यान नहीं दे पाती है।

इसी कारण सामाजिक दायित्व नैतिक मूल्य, पारिवारिक सामंजस्य विलुप्त होने के कगार पर है। जिससे जीवन तनावपूर्ण बनता जाता है। विभिन्न प्रकार की शारीरिक, मानसिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। 

इस वातावरण को स्वस्थ व संतुलित बनाने में साहित्य का भी बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। नैतिक मूल्यों में वृद्धि साहित्य का अध्ययन करके भी की जा सकती है। ऐसी साहित्य में अनेक कृतियाँ हैं जो हृदय को आंदोलित करती है व सामाजिक, नैतिक, मानवीय शिक्षा के मूल्यों को बख़ूबी संप्रेषण करती है इसलिए माता, पिता, अध्यापकों द्वारा प्रदत्त नैतिक शिक्षा के साथ साथ साहित्य का भी प्रचार, प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे वर्तमान परिवेश के अनुसार बच्चे जीने की कला सीख सकें। 
 

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