अलका की सफलता
बबिता कुमावत
अलका अपने जीवन में व्यस्त थी फिर भी बहुत उलझी हुई थी। सब कुछ था उसके पास, लेकिन फिर भी उसको लगता था कि कुछ है, जो मेरे जीवन के अधूरेपन को व्यक्त करता है। विवाह से पहले जो उसके सपनों की उड़ान थी, वो विवाह के पश्चात रुक सी गई थी। उसके जीवन की व्यस्तता इतनी बढ़ गई थी कि वह कभी अपने बारे में सोचने का वक़्त निकाल नहीं पाती थी। उसकी प्रतिभा सिमट सी गई थी।
एक दिन वह घर का काम समाप्त करके अपने कार्यस्थल पहुँची, अपने सहकर्मियों के हाथ में उसने पुस्तकें देखी तो अलका कि भावनाएँ भी उभर कर आईं। वहाँ भी कुछ लोग थे जो उसके जीवन को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते थे। अब उसने ठान लिया था कि उसे अपने रुके हुए जीवन को एक क़दम आगे बढ़ाना है और वह उसे बढ़ाकर ही दम लेगी।
अलका ने अपने परिवार से भी इस बारे में बातचीत की। किसी भी तरफ़ से उसको कोई आशा कि किरण दिखाई नहीं दी, उसने स्वयं फ़ैसला लिया कि अपने स्तर पर कुछ करना है। वह लग गई अपने सपनों की उड़ान भरने में, उसने अपने काम के साथ-साथ बहुत मेहनत की लेकिन शायद उसे अभी अपने लक्ष्य की प्राप्ति में और अधिक मेहनत की आवश्यकता थी, वह अपने सकारात्मक परिणाम को प्राप्त नहीं कर सकी।
एक बार फिर घर आकर थके व निढाल क़दमों से कुर्सी पर गिर पड़ी, फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी थी। उसके जीवन के कई मोड़ ऐसे आए जिनका सामना उसने किया। वह अपने उन अधूरे सपनों के साथ पुनः अपनी कर्मस्थली पर चल पड़ी। इस तरह दिन पर दिन निकलते गए, वह निराश क़दमों से आगे बढ़ती रही। एक दिन फिर उसके सामने सपनों को हवा देने वाली विज्ञप्ति तैयार थी, वह प्रसन्न क़दमों से घर आई और अपने जीवन की व्यस्तता को चार गुना बढ़ा दिया।
दिन पर दिन निकलते गए, वह लक्ष्य के साथ आगे बढ़ती रही। आख़िर एक दिन ऐसा आया जो अलका के लिए बहुत अधिक ख़ुशियों भरा था। क्योंकि जिस लक्ष्य को वह प्राप्त करना चाहती थी, वह उसको प्राप्त करने में आज सफल हो गई थी। उसकी ख़ुशी में चार चाँद लग गए थे, जिस ख़ुशी को प्राप्त करने के लिए उसे कई सालों से इंतज़ार था वह आज उसको प्राप्त करने में सफल हो गई थी। आज बधाइयाँ देने वालों का ताँता लगा हुआ था। लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से बधाइयाँ दे रहे थे और वो लोग भी जो उसके ख़िलाफ़ थे, उनको भी आज मजबूरन बधाई देने के लिए आना पड़ रहा था। उसने सबसे पहले भगवान को, फिर अपने घर आने वाले सभी मेहमानों को धन्यवाद दिया व आभार प्रकट किया।
उसने मन ही मन सोचा, ‘मनुष्य को अपने जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए जब तक लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो अपने क़दमों को रोकना नहीं चाहिए।’ और एक विजयी मुस्कान उसके चेहरे पर फैल गई।