वे पत्थर नहीं हैं

15-01-2020

वे पत्थर नहीं हैं

सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्‌’ (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

वे 
पत्थर नहीं हैं,
कभी न कभी तो 
धड़कता होगा दिल।
किसी के लिए तो,
रात के गहन सन्नाटे में 
तड़पता होगा दिल।
वे मुस्कुराती आँखें 
अपलक किसी को 
देखने लिए तो तरसती होगीं।
कभी तो
मन करता होगा
बंधनों को तोड़ने का,
और
मुक्त गगन में उड़ने का।


यदि ऐसा,
नहीं है तो 
कोई मुझे भी बताए
कैसे बना जाता है पत्थर।
जो 
कभी भी
कुछ भी 
महसूस नहीं करता।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें