शब्द ही करते हैं प्रेम
डॉ. नवीन दवे मनावतप्रेम या प्यार शब्द
ढाई अक्षर का ज़रूर है
पर अहसास है अंतर्मन की पीड़ा का
तड़प है रूह के लिए!
और ज़िम्मेदारी है भीतर के
स्नेह की
और . . .
लव का होना
द्वंद्व का होना है
भीतर से बाहर तक!
जो नोचती है संवेदना को
जलाती है
जीवित देह को
कातर दृष्टि से . . .
बस शब्द ही करते हैं
आदमी से प्रेम
और
सच्चे प्रेम की कविता
जहाँ निश्छल हो
अगाध प्रेमी