संघर्ष 

01-08-2019

संघर्ष 

सुनील चौधरी

जन्म और मृत्यु के बीच
संघर्ष है
ठीक वैसे ही
जैसे कि
नदिया की उफनती लहरों के बीच
पत्थर होता है
वह अपना अस्तित्व
एक साथ नहीं खोता
बस धीरे धीरे 
नदिया की धारा में 
मिल जाता है।

 

मेरे दोस्त 
काग़ज़ की नाव भी 
धीरे धीरे डूबती है
और काग़ज़ 
वह तो डूबता ही नहीं
क्योंकि
वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता।

 

तुम भी दो पाटों के बीच पिसकर
अन्न बनना
जो कि लोगों की पेट की आग बुझाता है।
जन्म और मृत्यु के बीच
उन्हें ज़िंदा बचाए रखता है।

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