प्रेम (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्‌’)

15-08-2020

प्रेम (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्‌’)

सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्‌’ (अंक: 162, अगस्त द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

प्रेम,
भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में
एक ठहराव होता है,
कल्पनालोक का
अहसास होता है,
स्वर्गीय अनुभूति
होता है,
कभी-कभी
कुछ कर गुज़रने का
मक़सद भी हो सकता है,
पर
यह एक
पूरी ज़िंदगी नहीं हो सकता।
 
नहीं
मैं
सहमत
नहीं...
प्रेम दर्शन नहीं,
कभी-कभी 
पूरी ज़िंदगी
किसी की यादों में
या
इंतज़ार में कट जाती है,
बिना किसी शोर,
बिना पछतावे के।

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