नदी तट

राजेंद्र कुमार शास्त्री 'गुरु’ (अंक: 154, अप्रैल द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

गुमसुम सा बैठा था नदी तट पर मैं,
पूछ लिया मुझसे हिलोरे खाती सरिता ने,
क्यों अनुरागी सा बैठा है तू यहाँ,
काम कर जाकर तू वहाँ।


मैंने कहा - ’मेरा क्या है? ओ सरिता!'
मुझे तो हर रोज़ पुकारती है, मेरी कविता!
तू क्यों रुकती है मेरे लिए यहाँ,
थोड़ी सी ओर बह ले. . .
आगे रेगिस्तान है वहाँ।


जो भी हो मैं तो अपना काम करता हूँ,
हररोज़ प्रभु की माला जपता हूँ,
तू कल कर लेना मुझसे बात,
तुझे तो बहना है दिन-रात।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें