मत सता तू
राजेंद्र कुमार शास्त्री 'गुरु’अब तो मत सता तू,
अतीत की बातें मत बता तू।
यूँ कुरेद-कुरेद कर मत ला,
मुझे हर लम्हा मत रुला।
ऐ! दिल जानता हूँ मैं,
मेरी ही ग़लती थी
ये मानता हूँ मैं।
पर अब क्या फ़ायदा?
टूट गया अब वो वायदा।
हम दोनों ही दोषी न थे,
ये साख, परम्परा और
इज़्ज़त भी कुछ कम न थे।
आख़िर क्या कमी थी मुझमें,
जानता हूँ कोई दम न था तुझमें।
तड़प उठता हूँ जब सावन आता है,
जब दो बूँद गिरती है तन पर,
तो बदन जल उठता है।
पीछा नहीं छोड़ती हैं तेरी यादें,
झकझोर देती हैं ये लम्बी रातें।
अब तो मत सता तू,
ऐ! दिल मुझे मत रुला तू!