महसूस करो
पेड़ से गिरते
पत्ते को।
उस तड़प को
जो उठ रही
है दिल में
किसी की याद बनकर,
उसे भोगना नहीं है
और न तो
जीवन भर जीना
केवल कुछ पल
महसूस करना।
बीच भीड़ में,
अकेले में
कुछ पढ़ते समय
या कुछ लिखते हुए
थम जाए 
हाथ में 
पकड़ा हुआ पेन
और कुछ लिखने लगे,
शायद किसी के
नाम का पहला अक्षर,
या शायद 
जिसके बारे में 
नहीं सोचना चाहते,
अब तुम महसूस करोगे 
यादें शब्दों में 
ढल रहीं है
बिना 
किसी आवाज़ के
एक युद्ध चल रहा है। 
बुद्धि और मन में।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- शोध निबन्ध
 - कविता
 - 
              
- अभी जगे हैं
 - इंतज़ार
 - इशारा
 - उदास दिन
 - कविता
 - किताब
 - गवाह
 - घुटन
 - डर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र ’शरत’)
 - तेरी यादों की चिट्ठियाँ
 - दिनचर्या
 - नियमों की केंचुल
 - पथ (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
 - पहेली
 - प्रयाग
 - प्रेम (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
 - बातें
 - बाज़ार
 - बिना नींद के सपने
 - भूख (सत्येंद्र कुमार मिश्र)
 - मछलियाँ
 - मद्धिम मुस्कान
 - महसूस
 - मुद्दे और भावनाएँ
 - राजनीति
 - राज़
 - लड़ने को तैयार हैं
 - लौट चलें
 - वे पत्थर नहीं हैं
 - व्यस्त
 - शब्द
 - शहर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र)
 - सीमाएँ
 - सुंदरता
 - सौंपता हूँ तुम्हें
 - फ़र्क
 
 - विडियो
 - 
              
 - ऑडियो
 -