जलता रहे हिन्दी का दीप

01-10-2021

जलता रहे हिन्दी का दीप

डॉ. कौशल श्रीवास्तव (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

संकेत : मेरी पुस्तक ‘कविता सागर’ (२०१७) से उद्धृत


मुझे मिला है आशीष उस धरती का 
जिसके आँचल में खिलता है 
सत्य और अहिंसा का ईश्वरीय पुष्प,  
जिसकी मिट्टी से आती है 
प्राचीन संस्कृति और ज्ञान की सुगन्ध,  
जिसकी जीवनशैली में शामिल है 
परम्परा और नवीनता का अनोखा मिश्रण। 
 
जिसके विशाल हृदय में अंकित है
भारत माता की तस्वीर 
और जिसके मस्तक पर सुशोभित है 
तिरंगे झंडे का लहराता दृश्य। 
 
जिसकी जिह्वा पर है सरस्वती का निवास 
जिसकी अमृतवाणी में संचित है 
हिन्दी भाषा की मिठास    
तथा भारत-वंशियों का आत्मीय अहसास। 
इसी हिन्दी में हम गाते हैं राष्ट्रीय गान 
जिसमें झलकता है हमारा स्वाभिमान,  
इसी के शब्दों में गुंजित है जयहिन्द का गीत 
और ‘वंदे मातरम’ का रोमांच।  
 
इसी भाषा ने दिया है 'नमस्ते' का सम्बोधन  
जो है 'गुड मॉर्निंग' का सुन्दर विकल्प,  
इसी के अक्षरों ने दिए हैं  
'वसुधैव कुटुम्बकम' और 'ओम' के शब्द  
जो हैं भारतीय संस्कृति के अटल स्तम्भ।   
 
आज हम मिलकर करें संकल्प 
विदेशी धरती पर जलता रहे हिन्दी का दीप  
और हमारी दिनचर्या में शामिल हो 
इसके प्रकाश का एक अंश। 
यही है हिन्दी-दिवस का पैग़ाम  
मैं करता हूँ हिन्दी प्रेमियों को प्रणाम। 

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