गली कूचों में सन्नाटा बिछा है

15-04-2020

गली कूचों में सन्नाटा बिछा है

स्व. अखिल भंडारी (अंक: 154, अप्रैल द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

गली कूचों में सन्नाटा बिछा है
हमारे शहर में क्या हो रहा है

 

ये किस ने ज़हर घोला है फ़ज़ा में
ये कैसा ख़ौफ़ तारी हो गया है

 

गले मिलना यहाँ की रीत कब थी
मिलाना हाथ भी दूभर हुआ है

 

सभी चेहरे नक़ाबों में छुपे हैं
सभी के दरमियाँ इक फ़ासला है

 

दुकानें बंद हैं अब शहर भर में
निज़ाम-ए-ज़िंदगी बदला हुआ है

 

हुए हैं क़ैद अपने ही घरों में
कि दुश्मन का अजब ये पैंतरा है

 

अजब ये जंग-ए-पोशीदा है इस को
घरों में बंद हो कर जीतना है

 

किरण उम्मीद की अब दिख रही है
उफ़ुक़ के पार कोई नूर सा है


पोशीदा = अदृश्य
उफ़ुक़ = क्षितिज

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