जब किसी 
चीज़ का 
विश्वास ना हो,
कुछ
अकस्मात हो,
कुछ
अकल्पनीय हो,
बिना योग के
संयोग हो,
तब
यह सब
सपना नहीं
तो सपने जैसा 
अवश्य लगता है।

सोचता हूँ
तब सपने में
और 
इसमें फ़र्क क्या है
हाँ 
फ़र्क इतना है ,
यह सब 
हम  खुली आँखों से
देखते हैं
और सपना 
बंद आँखों से।

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