दूरियाँ

15-12-2019

दूरियाँ

शकुन्तला बहादुर (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

दूरियाँ अब दूर होंगी क्या कभी?
मन हमारे मिल सकेंगे क्या कभी?

 

द्वेष की आँधी भयानक, 
चल रही ऐसी यहाँ।
दृष्टि धुँधली हो गई,
सन्मार्ग अब दिखता कहाँ?

 

हो गया विस्फोट ऐसा, 
ध्वंस सब कुछ हो गया।
देख कर भयभीत मन, 
विक्षुब्ध सा कुछ हो गया॥

 

स्वार्थ टकराएँ न अब, 
संघर्ष का फिर अन्त हो।
स्नेह और सौहार्द ही हो, 
शान्ति का फिर जन्म हो॥

 

हँस मिलें हम, साथ बैठें, 
प्रेम-रस में डूबकर।
आज सुख दु:ख बाँट लें हम,
खिन्नता को भूल कर॥

 

खो चुके जो मधुर-क्षण हम, 
वे न लौटेंगे कभी।
किन्तु अब भी समय है,
संग मुस्कुरा लें हम सभी॥

 

आज भूलें हम नहीं,
हम कौन थे, क्या हो गए हैं?
लड़-झगड़ कर क्यों 
परस्पर, दूरियों में खो गए?

 

दूरियाँ क्या दूर होंगी,अब कभी?
मन हमारे मिल सकेंगे फिर कभी?

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