अंतहीन यात्राएँ
डॉ. नवीन दवे मनावतअंतहीन यात्राएँ
रही है हमेशा जीवन की
जहाँ आदमी लड़खड़ाता है
बुझौवल बना
अन्तर्द्वन्द्व में
ख़ुद की हत्या कर देता है।
विखंडित सा हर समय
न जाने कितनी ही
रहस्यपरक आदतों को
समेटता है
और खोजता भी है
जीवन तंतु,
केवल ख़ुशमय जीवन के लिये ।
हर वक़्त सच्ची-
परिघटनाओं की परिधि में
जीवन को पाना चाहता है
(ख़ुश होने के लिये उपाय करता है)
अंधाधुंध नक़ल कर
नये जीवन की
अप्रहत जिजीविषाओं को
अपने प्रति उलाहना
प्राप्त करते हुए
होमाग्नि में,
हवि बनने को तत्पर रहता है।
उदास प्रार्थना हो!
या जीवन की प्रतीक्षारत
महत्वकांक्षा
या अनैतिक
कविता की आत्मकथा
जिसमें हिम्मत नहीं जीवनी बनने की
बस एक साहस है।
जीवन निर्झर
की तरह बहता है/ बहना चाहता है
एक स्नेह की
बात करना चाहता है
पर घेर देती है
बादलों की वह
उदासियाँ
जिससे वह
थोड़ा विचलित हो जाता है
(अपनी जिज्ञासाओं के साथ)
हर वक़्त एक
शुकुन की तलाश में
अंतहीन यात्राएँ करता है
आदमी......
6 टिप्पणियाँ
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Super guru dev
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V nice
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Super
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शानदार गुरुजी
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Super guruji
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Super