ज़िन्दगी

15-04-2023

ज़िन्दगी

अशोक रंगा (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

ऐ ज़िन्दगी! 
तुम वाक़ई सतरंगी हो
बहुरंगी हो
कभी उदास तो
कभी चंचल सी लगती हो
कभी ख़ुश तो
कभी नाख़ुश सी लगती हो
कभी स्वस्थ तो
कभी बीमार सी लगती हो
कभी सुलझी हुई तो 
कभी उलझी हुई सी लगती हो 
कभी बचपना 
कभी जवानी तो 
कभी बुढ़ापा 
लिए हुए लगती हो 
कभी आस्तिक तो 
कभी नास्तिक लगती हो 
वाक़ई ऐ ज़िन्दगी! 
तुम सतरंगी हो
बहुरंगी हो

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें